Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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स्तवनानि.
र, वीर घणुं जीवो रे ॥ ए आंकणी ॥ श्रामलकी क्रीमायें रमतां, हास्यो सुर प्रजु पामी रे॥ सुणजोने स्वामी आतमरामी, वात कहुं शिर नामी रे॥ वीर घणुं जीवो रे ॥१॥ मा० ॥ सौधर्मा सुरलोकें रहेता, अमो मिथ्या त जराणां रे ॥ नागदेवनी पूजा करतां, शिर न धरी प्रनु आणा रें ॥ वी॥२॥ मा० ॥ एक दिन इंज सन्नामां बेगं, सोहमपति एम बोले रे ॥ धैरजबल त्रिन्नुवननुं नावे, त्रिशलाबालक तोलें रे ॥ वी० ॥३॥ मा० ॥ साचुं साचुं सहु सुर बोल्या, पण में वात न मानी रे ॥ फणिधर ने लघु बालक रूपें, रमत रमीयो बानी रे ॥ वी० ॥४॥मा॥ वर्कमान तुम धैरज महोटुं, बलमां पण नहिं काचुं रे ॥ गिरुआना गुण गिरुश्रा गावे, हवे में जाएयुं साचुं रे ॥ वी० ॥ ५॥ मा० ॥ एकज मुष्टिप्रहारें मारु, मिथ्यात लाये जाय रे ॥ केवल प्रगटे मोहरायने, रहेवानुं नहिं थाय रे ॥ वी० ॥ ६ ॥ मा ॥ आजथकी तुं साहेब मारो, ढुं बुं सेवक तहारो रे ॥ खिण एक स्वामी गुण न विसारुं, प्राणथकी तुं प्यारो रे ॥ वी० ॥ ॥७॥ मा० ॥ मोह हरावे समकित पावे, ते सुर सरग सधावे रे ॥ मा हावीर प्रजु नाम धरावे, इंजसजा गुण गावे रे ॥ वी० ॥ ॥ मा ॥ प्रनु मल पता निज घेर श्रावे, सरखा मित्र सोहावे रे ॥ श्रीशुजवीरनुं मुखहुं देखी, माताजी सुख पावे रे ॥ वी० ॥ ए ॥ इति स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ नेमिनाथनुं स्तवन ॥ श्रावो हरि कुंकुमने पगले ॥ ए देशी ॥ - ॥ सुणो सखि सऊन ना विसरे ॥ आठ नवंतर नेह नि वाही, नवमे केम विबडे ॥ सु० ॥ नेह विबुझा आ उनीयामां, ऊंपापात करे ॥ सु॥ ॥१॥ घर बंडी परदेशे फरतां, पूरण प्रेमें ठरे ॥ सुण ॥ जान सजी करी जादव आये, नयनसे नयन मिले ॥ सु॥२॥ तोरण देख गये गिरनारे, चारित्र ले विचरे ॥ सु०॥ कुःखण नरियां उर्जन लोकां, दयिता दोष नरे ॥सु०॥३॥ माता शिवासुत सांजल सऊन, साचा एम ठरे ॥ सु॥ तोर ण श्रावी मूक समजावी, संयम शान करे ॥ सु०॥४॥राजुल रागविरा गें रहेतां, ज्ञान वधाइ वरे ॥ सु० ॥ प्रीतम पासें संजम वासे, पातक दूर हरे ॥ सु॥५॥ सहसावनकी कुंज गलनमें, झानसें ध्यान धरे ॥सु ॥ केवल पामी शिवगति गामी, श्रा संसार तरे ॥ सु०॥६॥ नेम जिनेश्वर सुखसजायें, पोढीया शिवनगरें ॥ सु० ॥ श्री शुजवीर अखंग
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