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स्तवनानि.
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जे कद्देवाय, ते यांबिलमां नवि लेवाय ॥ ७ ॥ उत्कृष्ठ विधें ऊष्णजल नीर, जघन्य विधें कांजीनुं नीर ॥ एम निर्दूषण आंबिल करे, मुख धोव दात नविकरे ॥ ८ ॥ जे निर्दूषण लिये आहार, उदननो तेने व्यव हार || टोलिगटपणी विनु, ते पण बिलमां सूजतुं ॥ ए ॥ शव गीतारण मत्सरी, जे जे विधि बोले ते खरी || बाजालान वि चारे जेह, विधि गीतारथ कहियें तेह ॥ १० ॥ यांबिल तप उत्कृष्टुं कथं, विघ्न विदारण कारण लघुं ॥ वाचक कीर्त्तिविजय सुपसाय, जांखे विनय विजय वजाय ॥ ११ इति बिल तपनी सद्याय ॥
॥ अथ चेतन शिखामणनी सद्याय ||
॥ चेतन कटु चेतीयें, ज्ञान नयन ऊघामी ॥ समता सहजपणुं जो, तजो ममता नारी ॥ चे० ॥ १ ॥ या डुनीयां दे बाजरी, जेसी बा जीगर बाजी ॥ साथ कीसीके नां चले, ज्युं कुलटा नारी ॥ चे० ॥ २ ॥ माया तरुबाया परें, न रहे स्थिरकारी ॥ जानत है दिलमें जनी, पण करत बिगारी ॥ ० ॥ ३ ॥ मेरी मेरी तुं क्या करे, करे कोणशुं यारी ॥ प लटे एक पल में, ज्युं घन अंधियारी ॥ ० ॥ ४ ॥ परमातम अविच ल जो, चिदानंद कारी ॥ नय कहे नियत सदा करो, सब जन सुखकारी ॥ ० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ आत्मबोधनी सधाय ॥
॥ होतमा मत, पम मोह पंजरमांदे ॥ माया जाल रे ॥धन राज्य, जोबन रूप रामा, सुत सुता घरबार रे || हुकम होदा हाथी घोडा, कारि मो परिवार ॥ माया जाल रे ॥ हो० ॥ १ ॥ अतुलवल हरि चक्री रामा तुं जो ऊर्जित मदमत्त रे ॥ क्रुर जमबल निकट आवे, गलित जावे सत्त ॥ माया० ॥ हो० ॥ २ ॥ पुहवीने जे छत्र परें करें, मेरुनो करे दंग रे ॥ ते पण गया हाथ घसता, मूकी सर्व खंग ॥ मा० ॥ हो० ॥ ३ ॥ जे तखत बेसी हुकम करता, परी नवला वेश रे ॥ पाघ सहेरा धरत टेढा, मरी गया जमदेश || मा० ॥ हो० ॥ ४ ॥ मुख तंबोल ने अधर राता, करत नव नवा खेल रे ॥ तेह नर बल पुण्य घाठे, करत परघर टेल ॥ मा० ॥ हो० ॥ ५ ॥ जज सदा जगवंत चेतन, सेव गुरुपदपद्म रे ॥ रूप कड़े कर धर्मकरणी, पामे शाश्वत सद्म ॥ मा० ॥ हो० ६ ॥ इति
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