Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 607
________________ स्तवनानि. को तणो रे, जेहमां देखो एक विचार रे ॥ कृष्णपरें सुख पामशो रे,समय सुंदर सुखकार रे ॥ निं० ॥ ५॥ इति ॥ . ॥ अथ धोबीमानी सशाय ॥ ॥ धोबीडा तुं धोजे मननुं धातियुं रे, रखे राखतो मेल लगार रे ॥ एणे रे मेलें जग मेलो कस्यो रे, विण धोयुं न राखे लगार रे ॥ धो॥ ॥१॥ जिनशासन सरोवर सोहामणुं रे, समकिततणी रूमी पाल रे॥ दानादिक चार बारणां रे, मांही नवतत्त्व कमल विशाल रे॥ धो॥२॥ तिहां जीले मुनिवर हंसला रे, पिये ले तप जप नीर रे ॥ शम दम आदें जे शील रे, तिहां खाले आपणुं चीर रे ॥ धो० ॥३॥ तपवजे तप तम के करी रे, जालवजे नवतत्त्ववाम रे ॥ बांटा उडाडे पाप अढारना रे, एम उजलु होशे ततकाल रे ॥ धो ॥ ४ ॥ आलोयण साबूमो सूधो करे रे, रखे आवे माया सेवाल रे ॥ निश्चे पवित्रपणुं राखजे रे, पढें आप णी नीमी संजाल रे ॥धो ॥५॥ रखे मूकतो मनमोकलुं रे, चल मेलीने संकेल रे ॥ समयसुंदरनी शीखडी रे, सुखमी अमृतवेल रे, ॥ धो० ॥६॥ ॥ अथ ढंढणऋषिजीनी सशाय ॥ ॥ ढंढण ऋषिजीने वंदणा॥हुंवारी लाल ॥ उत्कृष्टो अणगार रे॥ढुंवारी लाल ॥ अनिग्रह लीधो श्राकरो ॥ ढुं वारी० ॥ लब्धं बेशु थाहार रे ॥ हुँ वारी लाल ॥ ढं॥१॥ दिनप्रति जावे गोचरी ॥ हुं ॥ न मले शुद्ध श्रा हार रे ॥ हुं० ॥ न लीये मूल असूऊतो ॥ हुं० ॥ पीजर इवो गात रे ॥ ढुं० ॥ ढं० ॥२॥ हरि पूजे श्री नेमने ॥ हुँ । मुनिवर सहस बढार रे ॥ हुं ॥ उत्कृष्टो कोण एहमें ॥ हुं ॥ मुजने कहो कृपाल रे ॥ हुं ॥ ढं० ॥३॥ ढंढण अधिको दाखीयो॥ हुँ॥श्रीमुख नेम जिणंद रे ॥ ९॥ कृष्ण उम्माह्यो वांदवा ॥ हुं ॥ धन्य जादव कुलचंद रे ॥ हुं० ॥ ढं॥४॥ गलीबारें मुनिवर मल्या ॥ हुं० ॥ वांदे कृष्ण नरेश रे ॥ हुं० ॥ किणही मिथ्यात्वी देखीने ॥ हुँ० ॥ आव्यो नावविशेष रे ॥ हुं० ॥ ढं० ॥५॥ आवो श्रम धर साधुजी ॥ हुं० ॥ यो मोदक ने शुद्ध रे ॥ हुं०॥ ऋषिजी लेई आविया ॥ हुं० ॥ प्रजुजी पास विशुद्ध रे ॥ हुं० ॥ ढं० ॥ ॥६॥ मुज लब्धे मोदक मल्या ॥ हुँ ॥ पूजे के कहो कृपाल रे ॥ हुँ॥ लब्धि नहिं वत्स ताहरी ॥ हुँ ॥ श्रीपति लब्धि निहाल रे ॥ ढुं० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620