Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 613
________________ स्तवनानि. एए३ र सेंथो जस्यो ॥ ते देख रे, फट मूरख मन कां कस्यो ॥ देखी टीलां रे, ढीला इजिय करि गहगह्यो ॥ शिर राखमी रे, आंखदेई तुं कां रह्यो ॥७॥ त्रूटक ॥ कां रह्यो मूरख थांख देई, शणगार जार श्णे धस्या ॥ ए ऊली जीहा, आंखे पीहा, कानकूपा मल जस्या ॥ नारी अग्नि पुरुष माखण, बोल बोलतां विगरे ॥ स्त्रीदेहमां शुं सार दीगे, मूढ महियां कां करे ? ॥ ७ ॥ ढाल ॥ इंजिय वाह्यो रे, जीव अज्ञानी पापीयो ॥ माने नरगह रे, सरग करी विष व्यापीयो ॥ कां नूलो रे, शणगार देखी ए हना ॥ जाणो प्राणी रे, ए जे उखनी अंगना ॥ ए ॥ त्रूटक ॥ अंगना तुं नोमी बोकरे, यश कीर्ति सघले लहे ॥ कुशीलनुं जो नाम लीये को, परलोक उर्गति उःख सहे ॥ विजयन बोले नवि डोले, शीयल थकी जे नरवरा ॥ तस पाय लागु सेवा मागु, जे जगमाहे जयंकरा ॥१॥ ॥अथ श्रीशांतिजिननी आरती ॥ ॥ जय जय आरंती शांति तुमारी, तोरां चरण कमलकी में जा ब लिहारी॥ ज० ॥ १॥ वीश्वसेन अचिराजीके नंदा, शांतिनाथ मुख पू नमचंदा ॥ ज० ॥२॥ चालीश धनुष्य सोवनमय काया, मृगलांउन प्र जुचरण सुहाया ॥ ज० ॥३॥ चक्रवर्ती प्रजु पांचमा सोहे, शोलमा जिनवर, जग सह मोहे ॥ ज० ॥४॥ मंगल आरति तोरी कीजें,ज न्म जन्मनो लाहो लीजें ॥ ज० ॥ ५॥ कर जोडी सेवक गुण गावे, सो नर नारी अमपरद पावे ॥ ज० ॥६॥ इति शांतिजिन आरती ॥ ॥अथ श्रीश्रादिजिननी आरती ॥ ॥ अप्सरा करती आरती, जिन आगे॥ हां रे जिन आगे रे जिनथा गें, हां रे ए तो अविचल सुखडांमागे ॥ हां रे नानिनंदन पास ॥ अप्स रा करती आरती जिन आगे ॥१॥ ता थे नाटक नाचती, पाय ठमके॥ हां रे दोय चरणे फांऊर ऊमके ॥ हां रे सोवन घूघरी घमके॥ हां रे लेती फुदमी बाल ॥ अ॥॥॥ ताल मृदंग ने वांसली, कफ वीणा ॥ हारेरूमां गावंती वर जीणा ॥ हां रे मधुर सुरासुर नयणां ॥ हां रे जोती मुखडं निहाल ॥ अ॥३॥ धन्य मरुदेवामातने, प्रनु जाया ॥ हां रे तोरी कंचन वरणी काया, हां रे में तो पूरवपुण्यें पाया ॥हां रे देख्यो तोरो देदार ॥अण ॥४॥ प्राणजीवन परमेश्वर प्रजु प्यारो ॥ हारे प्रजु सेवक हुँ बु तारो ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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