Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 614
________________ एएन प्रतिक्रमण सूत्र. हां रेनवो नवनां पुःखडां वारो॥ हां रे तुमें दीनदयाल ॥०॥५॥ सेव क जाणी आपणो, चित्त धरजो ॥ हां रे मोरी आपदा सघली हरजो ॥ हां रे मुनि माणक सुखीयो करजो॥हां रे जाणी पोतानो बाल ॥०॥६॥ ॥ अथ जिननवअंगपूजाना दोहा लिख्यते ॥ ॥ जल जरी संपुटपत्रमां, युगलिक नर पूजंत ॥ रुषन चरण अंगू मो, दायक नव जल अंत ॥१॥ जानुबलें काउस्सग्ग रह्या, विचस्या देश विदेश ॥खमां खमां केवल लन्युं, पूजो जानु नरेश ॥२॥लोकांतीक वच ने करी, वरस्या वरशीदान ॥ करकांडे प्रनु पूजना, पूजो नवि बहु मान ॥३॥ मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीर्य अनंत ॥ नुजाबलें जव जल तस्या, पूजो खंध महंत ॥४॥ सिकशिला गुण ऊजली, लोकांतें जगवंत ॥ वसीया तिण कारण नवि, शिरशीखा पूजंत ॥ ५ ॥ तीर्थंकर पदपुण्यथी, तिहुश्रण जन सेवंत ॥ त्रिजुवन तिलक समा प्रजु, नाल तिलक जयवंत ॥ ६॥ शोल पहोर प्रजु देशना, कंठविवर वाल ॥ मधु रध्वनि सुर नर सुणे, तिणे गले तिलक अमूल ॥ ७॥ हृदय कमल उप शमबलें, बाल्या राग ने रोष ॥ हीम दहे वनखंडने, हृदय तिलक संतोष ॥ ७ ॥ रत्नत्रयी गुण ऊजली, सकल सुगुण विश्राम ॥ नानिक मलनी पूजना, करतां अविचल धाम ॥ए॥ उपदेशक नव तत्त्वना, तेणें नव अंग जिणंद ॥ पूजो बहुविध रागथी, कहे शुजवीर मुणींद ॥ १०॥ ॥ अथ श्रीपार्श्वनाथनी आरती ॥ ॥ आरती कीजें पास कुंवरकी, जन्म मरण जयहर जिनवरकी ॥ न यरि वणारसी जन्म कहावे, वामा मात प्रजु हुलरावे ॥ श्राप ॥१॥ यौ वन वन फलजोगी जणावे, नारी प्रत्नावती सती परणावे ॥ काय नीरो ग जोग विलसावे, पुरिसादाणी बिरुद धरावे ॥ आप ॥२॥ ज्ञानवि लोकी कमठ हरावे, गहन दहनथी फणी नीकसावे ॥ सेवकमुख नव कार सुणावे, धरणराय पदवी निपजावे ॥ श्रा० ॥ ३ ॥ क्रोधी कमठ हठ तप लय लावे, जिन दर्शनसें सुरगति पावे ॥ लोग संयोग वियोग बनावे, संयमश्री आतम परणावे ॥ श्रा० ॥ ४॥ ध्यान लेहरीयां काउ स्सग्ग नावें, खामीकू वम लय तव गवे ॥ मेघमाली जलधर वरसावे, जब नासा जर जर जल लावे॥ आ॥५॥ तव धरणेसासन कंपावे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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