Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 619
________________ स्तवनानि एएए ॥६॥ नवस्थितिनो परिपाक थयो तव, पंमितवीर्य उवसीयो ॥ जव्यस्व जावें शिवगति पामी, शिवपुर जश्ने वसियो रे प्राणी ॥ सम ॥ ७॥ मान जिन एणी परें विनये, शासननायक गायो ॥ संघ सकलसुख होये जेहथी, स्याहादरस पायो रेप्राणी सम॥॥कलश॥श्य धर्म नायक,मुक्ति दायक, वीर जिनवर, संथुण्यो ॥ सय सतर संवत वन्दि लोचन, वर्ष हर्ष, धरी घणो ॥ श्रीविजय देव, सूरिंद पटधर, श्रीविजयप्रन, मुणींद ए॥ श्री कीर्ति विजय वाचक, शिष्य श्णी परें, विनय कहे, थाणंद ए ॥ ए॥ ॥अथ सामायिकना बत्रीश दोषनी सद्याय ॥ ॥ चोपाई ॥ शुन गुरु चरणे नामी शीश, सामायिकना दोष वत्रीश ॥ कहीशं त्यां मनना दश दोष, कुशमन देखी धरतो रोष ॥ १॥ सामायिक अविवेकें करे, अर्थ विचार न हैडे धरे ॥मन उठेग श्छे यश मन घणो,न क रे विनय वडेरा तणो॥२॥जय आणे चिंतें व्यापार ॥ फलसंशय नीयाणां सार ॥ हवे वचनना दोष निवार, कुवचन बोले करे टुंकार ॥ ३॥ लक्ष कुंची जा घर ऊघाड, मुखें लवी करतो वढवाम ॥ श्रावो जावो बोले गाल मोह करी हुलरावे बाल ॥४॥ करे विकथा ने हास्य अपार, ए दश दोष वचनना वार ॥ कायाकेरां दूषण बार, चपलासन जोवे दिशि चार ॥५॥ सावद्य काम करे संघात, आलस मोडे ऊंचे हाथ ॥ पग लांबे बेसे अवि नीत, उठींगण ले यांनो जीत ॥ ६॥ मेल उतारे खरज खणाय, पग उप र चढावे पाय ॥ अति उघाडं मेले अंग, ढांके तेम वली अंग उपंग ॥७॥ निजायें रसफल निर्गमे, करहा कंटक तरुयें नमे ॥ ए बत्रीशे दोष निवा र, सामायिक करजो नर नार ॥ ॥ समता ध्यान घटा ऊजली, केश री चोर हुवो केवली ॥ श्रीशुनवीर वचन पालती, स्वर्गे गश् सुलता रेव ती ॥ ए॥ इति सामायिक बत्रीश दोषस्वाध्यायः ॥ సము ము ము ము ముందుకు ॥ इति श्रीश्रावकस्य दैवसिकादिकपंचप्रतिक्रमण । . सूत्राणि सार्थानि, स्तवनसद्यायस्तुत्यादि सहितानिच समाप्तानि ॥ شما میتونه D oorcenseronommodancoremonmendmenoro R amme GAOKG Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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