Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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स्तवनानि.
ए गल फरे जी, कोमि जतन करे कोय॥अणनावी होवे नहीं जी, जावी होय ते होय रे ॥ प्राण ॥२॥ आंबे मोर वसंतमा जी, मादें माले केश लाख ॥ के खस्यां केश खाखटी जी, केश् श्राधां के साख रे ॥ प्रा० ॥ ३॥ बाउ ल जेम नवितव्यता जी, जिण जिण दिशि उफाय ॥ परवश मन माणस तणुं जी, तृण जेमपूंठे घाय रे ॥ प्रा० ॥ ४॥ नियतिवशे विण चिंतव्यु जी, आवि मले ततकाल ॥ वरसा सोनुं चिंतव्युं जी, नियति करे विसरा ल रे ॥ प्राण ॥५॥ ब्रह्महत्त चक्रीतणां जी, नयण हणे गोवाल ॥ दोय सहस्स जस देवता जी, देह तणा रखवाल रे ॥ प्रा०॥ ६॥ कोकहो कोय ल करेजी, केम राखी शके प्राण ॥ आहेडी शर ताकियो जी, उपर जमे सींचाण रे ॥ प्रा॥७॥आहेमी नागें मश्यो जी, बाण लाग्यो सींचाण ॥ कोकुहो ऊमी गयो जी, जुठ जुर्म नियति प्रमाण रे ॥ प्राण ॥ ॥ शस्त्र हण्यां संग्राममा जी, राने पड्या जीवंत ॥ मंदिरमांथी मानवी जी, राख्या ही न रहंत रे ॥ प्रा० ॥ ए ॥ इति नवितव्यतावादः कथितः ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ राग मारुणी ॥ मनोहर हीरजी रे ॥ ए देशी ॥
॥ काल खजाव नियतमती कूमी, कर्म करे ते थाय ॥ कर्मे निरय ति रिय नर सुरगति जी, जीव जवांतरें जाय ॥ चेतन चेतीये रे ॥ १॥ कर्म समो नहिं कोय ॥ चेतन० ॥ ए आंकणी ॥ कर्मे राम वस्या वनवासें, सी ता पामे आल ॥ कम लंकापति रावणर्नु राज थयुं विसराल ॥ चे ॥ ॥२॥ कम कीमी कर्मे कुंजर, कमें नर गुणवंत ॥ कम रोग शोक कुःखपी डित, जन्म जाय विलपंत ॥ चे ॥३॥ कर्मे वरस लगें रिसहेसर, उद क न पामे अन्न ॥ कर्मे वीरने जुवो योगमां रे, खीला रोप्या कन्न ॥ चे॥ ॥४॥ कर्मे एक सुखपालें बेसे, सेवक सेवे पाय ॥ एक हय गय रथ चढ्या चतुर नर, एक आगल उजाय ॥ चे ॥५॥ उद्यममानी अंध तणी परें, जग हीडे हाहतो ॥ कर्मबली ते लहे सकल फल, सुख जर सेजें सूतो रे ॥ चे ॥६॥ उंदर एकें कीधो उद्यम, करंमियो करकोले ॥ मांहे घणा दिवसनो नूख्यो, नाग रह्यो फुःख डोले रे ॥ चे ॥७॥ विवर वरी मूषक तस मुखमां, दिये थापणो देह ॥ मार्ग लश् वन नाग पधाख्या, कर्ममर्म जुर्ज एह ॥ चे ॥ ७ ॥ इति कर्म विवादः कथितः ॥
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