Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 610
________________ प्रतिक्रमण सूत्र. तणी॥ व ॥ पूरणनुं नहिं काम ॥ ॥॥राग द्वेष दोय चोरटा ॥ व॥ वाटमां करशे हेरान ॥ अ॥ विविध वीर्य उदासथी॥ व० ॥ते हणजे रे स्थान ॥ अ० ॥ ५॥ एम सवि विघन विदारीने ॥ व० ॥ पहोंचजे शिव पुरवास ॥ १० ॥ खय उपशम जे नावना ॥ १० ॥ पोतें जया गुणराश ॥ अ॥६॥ दायिक नावें ते थशे ॥ व०॥ लाज होशे ते अपार ॥०॥ उत्तम वणिज जे एम करे ॥ व०॥ पद्म नमे वारं वार ॥ अ० ॥ ७॥इति ॥ ॥अथ सोदागरनी ॥ सद्याय ॥ लावोने राज, मोंघा मुलनां मोती ॥ ए देशी ॥ ॥ सुन सोदागर बे, दिलकी बात हमेरी ॥ तें सोदागर दूर विदेशी, सोदा करनकुं आया ॥ मोसम आये माल सवाया, रतनपुरीमें गया ॥ सु ॥ १ ॥ तिनुं दलालकुं हर समकाया, जिनसें बहोत नफाया ॥ पांचं दीवानुं पाऊं जमाया, एककुं चोकी बिगया ॥ सु॥ ५ ॥ नफा देख कर माल विहरणां, चुथा कटे न युं धरनां ॥ दोनुं दगाबाजी दूर करना, दीपकी ज्योतें फिरनां ॥ सु॥३॥ उर दिन वली महेलमें रहनां, बंदरकुं न हलानां ॥ दश सहेर दोस्तीहिं करना, उनसे चित्त मिलानां ॥ ॥ सु० ॥ ४ ॥ जनहर तजनां जिनवर जजनां, सजनां जिनकुं दला॥ नवसर हार गले में रखनां, जखनां लखकी कटा॥ सु० ॥५॥ शिरपर मुकुट चमर ढोलाइ, अम घर रंग वधाइ ॥ श्रीशुनवीर विजय घर जाई, होत सताबी सगा ॥ सु० ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥अथ आपस्वजावनी सद्याय ॥ ॥ श्राप खनावमां रे, अवधू सदा मगनमें रहेनां ॥ जगत जीव हे कर्माधीना, अचरिज कबुथ न लीना ॥ आ ॥१॥ तुम नहिं केरा कोई नही तेरा, क्या करे मेरा मेरा ॥ तेरा हे सो तेरी पास, अवर सबे अने रा ॥ आ ॥२॥ वपु विनाशी, तुं अविनाशी, अब हे श्नकुं विलासी॥ वपु संघ जब दूर निकासी, तब तुम शिवका वासी॥ आ॥३॥राग ने रीसा दोय खवीसा, ए तुम फुःखका दीसा ॥ जब तुम उनकुं दूरी करीसा, तब तुम जगका ईसा ॥ ॥४॥ परकी आसा सदा निरासा, ए हे जग जन पासा ॥ ते काटनकू करो अभ्यासा, लहो सदा सुखवासा ॥ आ॥ ॥५॥ कबहीक काजी कबहीक पाजी, कबहीक हुआ अपनाजी ॥ कब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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