Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 609
________________ स्तवनानि. ॥ ԱՇԽ दि, खंध ऊर्ध्वधो मली | त्रिक वाम पादें पुढवीने अप, वली तेउनी रक्षा करी ॥ जमणे पगे त्रण वाउ वणसई, त्रसकायनी रक्षा करुं ॥ पंचा श बोलें मिलेहण, करत ज्ञानी जव हरुं ॥ ५॥ ढाल ॥ एह मांहेथी रे, चालीश बोल ते नारीने ॥ शीशहृदयना रे, खंध बोल दश वारीने ॥ इं विधिश्यं रे, पoिहाथी शिव लह्यो । अवधि करी रे, उक्कायनो विरा धक को ॥ त्रुटक ॥ कह्यो किंचित् यावश्यकथी, तथा प्रवचन सारथी ॥ जावना चेतन पावना कही, गुरु वचन अनुसारथी ॥ शिव लहे जंबू रहे जो शुज, वीरवीजयनी वाणीयें ॥ मन मांकडुं वनवास रमतुं, वश कर करी घर येिं ॥ ६ ॥ इतिसझाय संपूर्ण ॥ ॥ अथ काया उपर सझाय ॥ ॥ काया रे वामी कारमी, सीचंतां रे शूके ॥ उंठ को कि रोमावली, फल फूल न मूके ॥ का० ॥ १ ॥ काया माया कारमी, जोवंतां जाशे ॥ मारग लेजो मोक्षनो, जीवडो सुख पाशे ॥ का० ॥२॥ अरिहंत आंबो मोरीयो, सामायिक था | मंत्र नवकार संजारजो, समकित शुद्ध गणे ॥ का० ॥ ॥ ३ ॥ वाडी करो विरतां तणी, सवि लोन निवारो ॥ शील संयम दोनुं एकता, जली पेरें पालो || को० ॥ ४ ॥ पांच पुरुष देशावरी, बेठा इ डाली ॥ फल चूंटी ने चोरियां, न करी रखवाली ॥ का० ॥५ ॥ इ वाडी एक शूडलो, सुख पिंजर बेठो ॥ बहुत जतन करी राखीयो, जातो किणही नदीठो ॥ का० ॥ ६ ॥ कां जोलपणे जव हारियो, मत मोमी संजाली ॥ रत्न चिंतामणि सारिखी, कां गांव न वाली ॥ का० ॥७॥ रत्नतिलक सेवक जणे, सुजो वनमाली ॥ वाकजली परें पालजो, करजो ढंग वाली ॥ का० ॥८॥ ॥ अथ वणजारानी सझाय ॥ ॥ नरजव नयर सोहामं ॥ वणजारा रे ॥ पामीने करजे व्यापार ॥ हो मोरा नायक रे || सत्तावन संवर तणी ॥ वं० ॥ पोटी जरजे उदार ॥ ० ॥ १ ॥ शुभ परिणाम विचित्रता ॥ व० ॥ करियाणां बहुमूल ॥ ० ॥ मोहनगर जावा जी ॥ ० ॥ करजे चित्त अनुकूल ॥ ० ॥ ॥ २ ॥ क्रोध दावानल उलवे ॥ व० ॥ मान विषम गिरिराज ॥ ० ॥ उलंघजे हलवें करी ॥ व० ॥ सावधान करे काज ॥ ० ॥ ३ ॥ वंशजाल माया त ॥ ० ॥ नवि करजे विशराम ॥ ० ॥ खामी मनोरथ नट Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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