Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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एनन
प्रतिक्रमण सूत्र. ॥ ढंग ॥ ७॥ तो मुझने लेवो नहीं ॥ हुँ० ॥ चाख्यो परवण काज रे ॥ हुं ॥ इंट निंजाडे जाश्ने ॥ हुँ॥ चूरे कर्म समाज रे ॥ हु०॥ ढंग ॥॥
आवी सूधी जावना ॥ हुँ ॥ पाम्यो केवल नाण रे ॥ ढुं० ॥ ढंढण ऋषि मुक्तं गया ॥ ९ ॥ कहे जिनहर्ष सुजाण रे ॥ हुं० ॥ ढं० ॥॥इति ॥
॥अथ मुहपत्तीना पच्चास बोलनी सद्याय ॥ ॥ ढाल ॥ सिरिजंबूरे, विनयनक्ति शिर नामिने ॥ कर जोमी रे, पूजे सो हमखामीने॥ जगवंता रे कहो शिवकांता केम मले ॥ कहे सोहम रे, मि थ्या चमदूरेटले ॥ त्रुटक ॥ दूरेटले विष गरल ईहा, उन्नय अनुसरी॥ एक ज्ञान दूजी करत क्रिया, अनेदारोपण करी ॥ जिम पंगु दर्शित चरण कर्षित, अंध बिडं निज पुर गया॥तिम सत्व सजतां तत्त्व जजतां, नविक केश् सुखिया थया ॥१॥ ढाल ॥ वैकल्य ज्युं रे, कष्ट ते करवू सोहिर्बु ॥ पण जंबू रे, जाणपणुं जग दोहिनुं ॥ तेणे जाणी रे, आवश्यक किरिया करो॥ उपगरणे रे, रजहरणो मुहपत्ती धरो ॥ त्रुटक ॥ मुहपत्ती श्वेतें मानोपेतें, शोल निज अंगुल नरी॥ दोय हाथ काली दृग निहाली, दृष्टि पडिलेहण करी॥ त्यां सूत्र अर्थ सुतत्त्व करीने, सदडं एम नावियें ॥ नचा वच्चारूप तिग तिग, पखोमा षट लावियें ॥२॥ढाल ॥ समकित मोहनी रे, मिश्र मिथ्यात्वने परिहरु ॥ काम राग रे, स्नेह दृष्टिराग संहरं ॥ ए साते रे, बोल कह्या हवे बागलें ॥ अंगुलि वच्चें रे, त्रण वधूटक कर तलें ॥ त्रुटक ॥ करतलें वामें अंजलि धरि, अखोडा नव कीजियें ॥प्रमार्जन नव तेमज करिये, तिग तिगंतर लीजियें ॥ सुदेव सुगुरु सुधर्म आदरं, प्रतिपदी परि हरु ॥ वली शान दर्शन चरण श्रादरूं, विराधक त्रिक अपहरं ॥३॥ ॥ ढाल ॥ मनोगुप्ति रे, वचन कायगुप्ति नजुं ॥ मनोदंग रे, वचन काय दंडने तनुं ॥ पचवीश रे, बोल ए मुहपत्तीना लह्या ॥ हवे अंगना रे, परि हरु एम सघला कह्या ॥ त्रुटक ॥ कह्या बधूटक करि परस्पर, वाम हा थें त्रिक करो॥ हास्य रति ने अरति उमी, इतर कर त्रिक अनुसरो ॥ जय शोक उगंबा तजीने, पयाहीणो श्राचरो ॥ कृष्णवेश्या नील कापोत, ल लाटें त्रिक परिहरो॥४॥ ढाल ॥ रस गारव रे, शशि शाता गारवा ॥ मुख हैडे रे, त्रण त्रण एम धारवा ॥ मायाशल्य रे, नियाण मिथ्यात्व टालियें ॥ वाम खंधे रे, क्रोध मान दोय गालियें ॥ त्रुटक ॥ गालीयें माया लोज द
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