Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 600
________________ प्रतिक्रमण सूत्र. किउं कवित्त उपगार करो ॥ आदेहिं मंगल एह पक्षणीजें, परव महोत्सव पहिलो लीजें, कि वृद्धि कहाण करो ॥ ४५ ॥ धन्य माता जिणें उयरें धरिया, धन्य पिता जिण कुल अवतरिया, धन्य सह गुरु जिणें दिकिया ए ॥ विनयवंत विद्यानंमार, जस गुण को न लप्ने पार, विद्यावंत गुरु वीनवे ए ॥ गौतमखामीनी रास नणीजें, चनविह संघ रलियायत कीजें, झद्धि वृद्धि कल्याण करे ॥ ४६ ॥ इतिश्री गौतमखामीनो रास संपूर्ण ॥ ॥अथ दीवाली, स्तवन ॥ ॥प्रनु कंठे उवि फूलनी माला ॥ ए देशी ॥ ___॥ रमती जमती अमुन साहेली, बेहु मली लीजियें एक ताली रे॥ सखि आज अनोपम दीवाली ॥ लील विलासें पूरण मासे, पोष दशम निशि रढीयाली रे ॥ स ॥१॥ पशु पंखी वसीयां वनवासे, ते पण सुखी यां समकाली रे ॥ स ॥ एणी रात्रं धेर घेर उत्सव होशे, सुखीयां जगत मां नर नारी रे ॥ स ॥२॥ उत्तम ग्रह विशाखा जोगें, जन्म्यां प्रनु जी जयकारी रे ॥ स ॥ साते नरकें थयां अजुवालां, थावरने पण सुख कारी रे ॥ स ॥३॥ माता नमी श्रावे दिगकुमरी, अधोलोकनी वस नारी रे ॥ स ॥ सूतीघर ईशानें करती, जोजन एक अशुचि टाली रे ॥स॥४॥ऊर्ध्व लोकनीाउज कुमरी, वरसावे जल कुसुमाली रे॥ स०॥ पूरव रुचक आदर्पण धरती, दक्षिणनी अम कलशाली रे॥ स० ॥५॥ अम पबिमनी पंखा धरती, उत्तर आठ चमर ढाली रे ॥ स ॥ विदिशिनी चउ दीपक धरती, रुचक छीपनी चल बाली रे ॥ स ॥६॥ केलतणां घर त्रणे करीने, मर्दन स्नान अलंकारी रे ॥ स ॥ रक्षापोटली बांधी बेहुने, मंदि र मेहय्यां शणगारी रे ॥ स० ॥ ७॥ प्रनु मुख कमलें अमरी नमरी, रास रमंती लटकाली रे ॥ स ॥ प्रजु माता तुं जगतनी माता, जन दी पकनी करनारी रे ॥ स ॥ ॥ माजी तुऊ नंदन घणुं जीवो, उत्तम जीवने उपगारी रे ॥ स० ॥ बप्पन दिगकुमरी गुण गाती, श्री शुजवीर वचन शाली रे ॥ स ॥ ए ॥ इति ॥ ॥अथ आमलकी क्रीडानुं स्तवन ॥ ॥श्राव्यो आषाढो मास, नाव्यो धूतारो रे ॥ ए देशी ॥माता त्रिशला नंदकुमार, जगतनो दीवो रे ॥ मारा प्राण तणो आधा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org


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