Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 602
________________ ५८‍ प्रतिक्रमण सूत्र. सनेही, कीर्ति जग पसरे ॥ सु० ॥ ७ ॥ इति श्री नेमिनाथस्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री नेमीनाथनुं स्तवन ॥ ॥ सुण गोवाली, गोरसमावाली रे ऊजी रहेने ॥ ए देशी ॥ ॥ शामलीया लाल, तोरणथी रथ फेस्यो, कारण कहोने ॥ गुण गिरुवा लाल, मुजने मूकी चाल्या, दरिसन धोने ॥ ए की ॥ हुं हुं नारी तमारी, तुमें श्ये प्रीत मूकी मारी, तुमें संयमस्त्री मनमां धारी ॥ शा० ॥ गु० ॥ १ ॥ तुम पशुआ उपर कृपा आणी, तुमें मारी वात को नव जाणी तुमें विपरं नहिं को प्राणी ॥ शा० ॥ गु० ॥ २ ॥ आठ जवानी प्री तमी, मूकीने चाल्या रोतमी, नहिं सननी ए रीतमली ॥ शा० ॥ गु० ॥ ३ ॥ नवि कीधो हाथ उपर हाथे, तो कर मूकावुं हुं माथे, पण जावुं प्रभुजीनी साथै ॥ शा० ॥ गु० ॥ ४ ॥ एम कही प्रभु हाथे व्रत लीधो, पोतानो कारज सवि कीधो, पकड्यो मारग एणें शिव सीधो ॥ शा० ॥ ॥ गु० ॥ ५ ॥ चोपन दिन प्रभुजीयें तप करियो, पण पोतें केवल वर धरियो, पणसत बत्री शशुं शिव वरियो ॥ शा० ॥ गु० ॥ ६ ॥ एम त्रण कल्याणक गिरनारें, पाम्या ते जिन उत्तम तारे, जो पदपद्म तस शिर धारे ॥ शा० ॥ गु० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री सिद्धाचलजीनं स्तवन ॥ सेलुंगर तुं शीदनें आव्यो ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रवो गिरि सिद्धाचल जश्यें, पाप हरी निर्मल तो थइयें, कुमति कदाग्रहने तजीयें, आवो गिरि सिद्धाचल जइयें ॥ १ ॥ तारण तीरथ दो कहीयें, थावर जंगमने लहियें, लोकोत्तरने नित्य नजीयें ॥ श्र० २ ॥ पद वाणे पा चरियें, पुण्य घणो लानें जरीयें, सिद्धा अनंता कांकरीयें ॥ श्र० ॥ ३ ॥ सोना रूपाने फूलें, मुक्ताफल अमुलक मूलें, पूजीने नाम नहीं भूले ॥ ० ॥ ४ ॥ चमीयें गिरिवर अनुकर में, अंतर ध्यान रखें रमीयें, मरुदेवा नंदनने नमीयें ॥ ० ॥ ५ ॥ रायण देवल जिनरा या, पूर्व नवाएं श्हां याव्या, लबी लली तस प्रमुं पाया ॥ ० ॥ ॥ ६ ॥ सूरजकुंरुमां जलें नहाशुं, पेरण क्षीरोदक आतुं, आंगी रवी जिनगुण गाशुं ॥ श्र० ॥ ७ ॥ तीरथ दरशनें फरीयें, जोग उपाधि दूरें करियें, लाज अनंतो एणें गिरियें ॥ ० ॥ ८ ॥ गाम बगोदरेथी आवे, संघवी संघवण मन जावे, जिन गुणमाला कंठें गवे ॥ श्र० ॥ ए ॥ जंगणीश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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