Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 592
________________ प्रतिक्रमण सूत्र. दान ॥रा॥२॥ एहवे कोश्क मुनि तिहां आव्यो, गुणसागर तस नाम रे॥ राजा ते मुनिवरने देखी राणीने कहे ताम ॥ रा॥३॥ ऊठो ए मुनिने व होरावो, जे होय सुजतो आहार रे॥निसुणी राणीने मुनि उपर, उपन्यो क्रोध अपार ॥ रा ॥४॥ विषयथकी अंतराय थयो ते, मनमां बहु कुःख लावे रे ॥ रीशें बलती कडवं तुंबडं, ते मुनिने वहोरावे ॥ रा० ॥५॥ मुनिने आहारथको विष व्याप्युं, कालधर्म तिहां कीघो रे ॥ राजायें राणीने ततदण, देशनिकालो दीधो ॥ रा ॥६॥ सातमे दीन मुनि ह त्यापा, गलत कोढ थयो अंगें रे ॥ काल करीने बठी नरकें, उपनी पाप प्रसंगें ॥रा० ॥७॥ नारकीने तिर्यंच तणा नव, नटकी काल अनंत रे॥ दीप कहे हवे धर्मजोगनो, कहिशुं सरस वृत्तंत ॥ रा० ॥ ॥ इति ॥ ॥ ढाल पांचमी॥ ॥ ते राणी मुनि पापथी॥ केशरीया लाल ॥ फरती जवचक्र फेर रे॥केश रीया लाल ॥ तारा नयरमा उपनी ॥ के० ॥ वन मित्र शेठने घेर रे ॥ के० ॥ ॥१॥ जून कर्म विटंबना ॥ के ॥ धनवनी कुखें उपनी ॥ के० ॥ उर्ग धा तस नाम ॥ रे॥ के ॥ नगर वणिकना पुत्रने ॥ के ॥ परणावी बहु मान रे ॥ के० ॥२॥ जू० ॥ सुखशय्यानी उपरें ॥ के० ॥ आवी कंतनी पास रे ॥ के० ॥ बहु पुगंधता उबली ॥ के० ॥ स्वामी पाम्यो त्रास रे ॥ ॥ के० ॥३॥ जू० ॥ मूकी परदेशे गयो ॥ के० ॥ जु जुर्म कर्म स्वन्नाव रे ॥ के० ॥ एक दिन कन्यानो पिता ॥ के० ॥ ज्ञानीने पूछे जाव रे ॥ के० ॥४॥ जू० ॥ झानीयें पूर्वनव कह्यो ॥ के० ॥ जांख्यो सहु अवदात रे ॥ के० ॥ फरी पूढे गुरुरायने ॥ के ॥ केम होवे सुख शात रे ॥ के० ॥ ॥५॥ जू ॥ गुरु कहे रोहिणीतप करो ॥ के ॥ सात वर्ष सात मास रे ॥ के० ॥ रोहिणी नक्षत्रने दिनें ॥ के० ॥ चोविहारो उपवास रे ॥ के० ॥ ६ ॥ जू० ॥ वासुपूज्य नगवंतनी ॥ के० ॥ पूजा करो शुन नाव रे ॥ के० ॥ एम ए तप थाराधतां ॥ के ॥ प्रगटे शुछ खनाव रे ॥ के ॥ ७ ॥ जू० ॥ करजो तप पूरण थये ॥ के० ॥ उजमणुं नली जात रे ॥ के० ॥ तेथी एक नव आंतरे ॥ के ॥ लेशो ज्योति महांत रे ॥ के० ॥ ॥ ॥ एम मुनि मुखथी सांजली ॥ के० ॥आराधी ते सार रे॥ के० ॥ ए तारी राणी थई ॥ के० ॥ रोहिणी नामें नार रे ॥ के ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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