Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 591
________________ . स्तवनानि. देखी अति हरखी, रोहिणी ताम जो ॥ पिउने नांखे ए नाटक, कुण नातनुं रे लो ॥ हारे मारे दीप कहे ए, पूरव पुण्य संकेत जो ॥ जन्मथ की नवि दीकुंकुःख, को जातनुं रे लो ॥६॥ ॥ ढाल बीजी ॥ ॥ पिउ कहे जोबन मदमाती, सहुने सरखी श्राशा॥ ए बालकना फुःख थीरोवे, तुऊने होवे तमासा ॥ बोलो बोल विचारी राज, एम केम कीजें हांसी ॥१॥ तव राणीने रीश करी खोलेथी, पुत्रने खूची लीधो ॥ रोहि णी राणी नजरें जोतां, गोंखथी नाखी दीधो ॥बो॥२॥ ते देखी सह अंतेउरमां, खजनें पोकार ते कीधो ॥ रोहिणी एम जाणे जे बालक, को के रमवा लीधो ॥ बो० ॥३॥ नगरतणे रखवाले देवें, अधर ग्रह्यो ति हां आवी ॥ सोनाने सिंहासण धाप्यो, आजूषण पहेरावी ॥ बो॥४॥ नगरलोक सहु लाग्य वखाणे, राजा विस्मय थावे ॥ दीप कहे जस पुण्य सखाइ, तिहां सहु नव निधि थावे ॥ बो ॥ ५॥ इति ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ रूमो मास वसंत ॥ ए देशी ॥ ॥ एक दिन वासुपूज्य जिनवरना, अंतेवासी मुनिराज वहाला ॥ रूप कुंज ने सुवर्णकुंजी, चनशानी नवजहाज वहाला ॥१॥ रोहिणी तप फल जग जयवंतुं ॥ए आंकणी॥पाउ धाख्या प्रनु नयर समीपें, हरख्यो रोहिणी कंत वहाला ॥ सहु परिवारशुं पदयुग वंदे, निसुण्यो धर्म एकंत वहाला॥रो ॥२॥ कर जोमी नृप पू गुरुने, रोहिणी पुण्यप्रबंध वहाला ॥ शुं कीधुं प्रनु सुकृत एणे, नांखो ते सयल संबंध वहाला ॥ रो० ॥३॥ गुरु कहे पूर्व नवमां कीg, रोहिणीतप गुणखाण वहाला ॥ तेथी जन्मथकी नवि दी, सुख उःख जाण अजाण वहाला ॥ रो० ॥ ४ ॥ नांखशे गुरु हवे पूर्व नव नो, रोहिणीनो अधिकार वहाला ॥ दीप कहे सुणजो एक चित्तें, कर्मप्रपं च विचार वहाला ॥ रो० ॥५॥ इति ॥ ॥ ढाल चोथी॥ ॥ गुरु कहे जंबू क्षेत्र नरतमां, सिझपुर नगर मकाररे ॥ पृथिवीपाल नरेसर राजा, सिझमती तस नार ॥ राजन सुणजो रे ॥ कांश पूरव नव अधिकार, दिलमां धरजो रे ॥१॥ ए आंकणी ॥ एक दिन श्राव्या चं उ द्याने, राणी ने वली राय रे ॥ खेले क्रीमा नव नव नातें, जोजो कर्म नि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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