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प्रतिक्रमण सूत्र. __ अर्थः-(मुनीं के०) हे मुनीं! तमो (लोके के।) जगतने विषे (सू र्यातिशा यिमहिमा के) सूर्यथकी अधिक महिमावाला एवा (असि के०) बो. ते केवी रीतें सूर्यातिशायि बो? तो के (कदाचित के०) क्यारें पण (अस्तं के०) अस्तपणाने (नउपयासि के०) नथी पामता एवा बो. अने सूर्य तो अस्त पामे . तथा वली तमें (नराहुगम्यः के०) राहुयें ग्रसित होता नथी अने सूर्य तो राहुग्रस्त थाय ने वली तमें तो ( युगपत. के०) समकालें (जगंति के०) त्रण जगतने (सहसा के० ) साथेंज (स्पष्टी करोषि के ) प्रकाश करो हो, अने सूर्य तो एक जंबूहीपनेज प्रकाश करे . तथा तमो तो (अंजोधर के) ज्ञानावरणादिक पांच आवरणरू प मेघ तेनो (उदर के०) मध्यनाग तेथकी (निरुक के०) रोकायो बे (म हाप्रनावः के०) महोटो महिमा जेनो एवा (न के०) नथी अने सूर्य तो मेघना वादलांनो मध्यनाग जे मेघघटा, तेणें रोकाय एवो डे ॥ १७ ॥
हवे विशेषे करी चंञोपमान व्यर्थ करतो बतो कहे बे. नित्योदयं दलितमोदमदांधकारं, गम्यं न राहुवदन स्य न वारिदानाम् ॥ वित्राजते तव मुखाब्जमनल्प
कांति, विद्योतयजगदपूर्वशशांकबिंबम् ॥ १७ ॥ अर्थः-हे नाथ ! (तव के०) तमारूं (मुखाजं के०) मुखरूप कमल जे बे ते, (अपूर्व के०) विलक्षण एवं (शशांक के०) चंजमा तेना (बिंबं के०). बिंबरूप (वित्राजते के०) शोने जे. ते केवी रीतें ? तो के तमाकं मुखरूप कमल तो (नित्योदय के०) निरंतर उदय पामेबुं ने अने चंडबिंब जे ,ते तो निरंतर उदय थवावालुं यतुं नथी. तथा वली तमारुं मुखाब्ज केहवू डे ? तो के (दलितमोहमहांधकारं के०) मोह एटले अज्ञानरूप महोटा अंध कारने दली नाख्यो ने जेणे एवं, अने चंद्रबिंब तेवा गुणवायूँ नथी ते तो मात्र अंधकारनोज नाश करे . तथा वली तमारं मुखकमल तो, पुर्वा दि जे कुतर्क करनारा वादियो तप (राहुवदनस्य के०) राहुनुं जे मुख तेने (नगम्यं के०) ग्रसवा योग्य नथी अने चंडने तो राहुनु मुख ग्रसे बे. तथा वली तमाकं मुखकमल तो (अनल्पकांति के०) अल्पकांतिवायूँ नश्री थतुं अने चंद्रबिंब तो अल्पकांतिवावं पण क्यारेक थाय . तथा वली
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