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प्रतिक्रमण सूत्र. साधुने मूलगुण ते पांच महाव्रत अने उत्तरगुण ते पिंमविशुझ्यादिक जा णवां, तथा श्रावकने मूलगुण ते पांच अणुव्रत अने उत्तरगुण ते त्रण गुण व्रत अने चार शिदाबत जाणवां, तिहां सर्व पञ्चरकाणादिक तेहना नांगा जे रीतें थाय, ते रीतें कहे .
तेमां सर्व उत्तरगुण पच्चरकाण अनागतादिक दश प्रकारें पूर्वे कह्यां, अने देशोत्तर गुण पच्चरकाण सात प्रकारे ते त्रण गुणव्रत अने चार शिक्षा व्रत मली थाय, तथा वली एक श्वर अने बीजुं यावत्कथिक, ए बे नेदें उत्तरगुण प्रत्याख्यान तेमां साधुने इत्वरगुण पञ्चरकाण ते कांश्क अनिग्रहा दिक जाणवां अने यावत्कथिक ते पिंमविशुख्यादिक तथाअनियंत्रितादिक जे पुर्जिदादिकं पण अजग्न होय जंग न थाय ते सर्व यावत्कथिक जाणवां अने श्रावकने तो इत्वर ते चार शिदात्रतादिक ने अने यावत्कथिक त्रण गुणव्रतादिक जे. तेश्रावक बे नेदें, एक अविरति सम्यग्दृष्टि ते केवल सम्य गदर्शन युक्त कृष्ण श्रेणिकादिकनी परें जावा अने बीजा विरति सम्य ग्दर्शन युक्त कृष्ण श्रेणिकादिकनी परें जाणवा अने बीजा विरति सम्य गदृष्टि ते वली बे ने एक सानिग्रही अने बीजा निरनिग्रही.
ते वीली विनज्यमान थका आठ नेदें थाय, ते केवी रीतें? तो के एक सुविध, त्रिविध, बीजो विविध विविध, त्रीजो विविध एकविध, चोथो एक विध त्रिविध, पांचमो एकविध विविध, बहो एकविध एक विध, ए उ नांगा पांच व्रत आश्रयी थाय अने कोशएक उत्तरगुणमांहेलु कोशएक व्रत लीये ते सातमो नांगो जाणवो, अने आग्मो नांगो को नियम मात्र नज लीये ते जाणवो. ए रीतें पूर्वोक्त पांच अणुव्रतादिकने तेने उ नांगे गुणी ये तेवारें त्रीश जंग थाय तेनी साथें एक उत्तरगुणनो नांगो मेलवीयें, तेवारें एकत्रीश नांगा थाय, तेनी साथै वली को नियम मात्र व्रत न लीये. तेनो एक नांगो मेलवीये तेवारें बत्रीश नेदें श्रावक सम्यग्दर्शनी शंका कांदादिरहित अमूढदृष्टिपणे जाणवा. इत्यादिक नेदनी वक्तव्यता बहु , पण यहां मुख्यतायें उंगणपच्चास नांगा थाय, ते नांगा गाथाना अर्थे कहे . मण वयण काय मणवय, मणतणु वयतणु तिजोगि सग सत्त॥ कर कारणुम उति जुय, तिकालि सीयाल नंगसयं ॥४२॥
अर्थः-एक प्राणातिपातादिकने (मण के०) मने करी न करूं, बीजो (व
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