Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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स्तवनानि.
५४७ मिनी सरसती,प्रेमें प्रणमुं पाय ॥१॥ त्रिजुवनपति त्रिशला तणो, नंदन गुण गंजीर ॥ शासननायक जग जयो, वर्षमान वड वीर ॥२॥ एक दिन वी र जिणंदने, चरणे करी प्रणाम ॥ नविक जीवना हित जणी, पूछे गौतम खामि ॥३॥ मुक्तिमार्ग श्रारांधियें, कहो केणी परें अरिहंत ॥ सूधा स रस तव वचन रस, नांखे श्री नगवंत ॥४॥ अतिचार आलोश्ये, व्रत ध रीयें गुरु साख ॥ जीव खमावो सयल जे, योनि चोराशी लाख ॥ ५ ॥ विधिशु वली वोसिरावियें, पापस्थान अढार ॥ चार शरण नित्य अनुस रो, निंदो कुरित आचार ॥ ६ ॥ शुजकरणी अनुमोदियें, नाव जलो मन आणि ॥ अणसण अवसर आदरी, नवपद जपो सुजाण ॥ ७॥ शुजगति आराधन तणा, ए ३ दश अधिकार ॥ चित्त आणीने आदरो, जिम पामो नवपार ॥ ॥ इति ॥
॥ ढाल पहेली ॥ ए लिंमी किहां राखी ॥ ए देशी ॥ झान दरिसण चारित्र तप वीरज, ए पांचे आचार ॥ एह तणा श्ह नव परजवना, आलोश्य अतिचार रे ॥ १॥ प्राणी ज्ञान जो गुणखा णी ॥ वीर वदे एम वाणी रे ॥ प्राण ॥ गुरु उलवीयें नहिं गुरु विनयें, कालें धरी बहुमान ॥ सूत्र अर्थ तज्नय करि सूधां, नणीयें वही उप धान रे ॥२॥ प्रा० ॥ झानोपकरण पाटी पोथी, उवणी नोकरवाली ॥ तेह तणी कीधी आशातना, शान नक्ति न संजाली रे ॥३॥ प्रा० ॥ इत्यादिक विपरीतपणाथी, शान विराध्यु जेह ॥ आ नव परनव वलिय नवोनवें, मिठामुक्कम तेह रे ॥४॥ प्राणी ॥ समकित ख्यो शुझ जाणी ॥ जिनवचनें शंका नवि कीजें,नवि परमत अनिलाष॥ साधुतणी निंदा परिह रजो, फलसंदेह म राख रे ॥५॥ प्राण ॥स॥ मूढपणुं बंमो परशंसा, गुणवं तने श्रादरिये ॥ साहम्मी धर्मे करी स्थिरता, नक्ति प्रस्तावना करीयें रे॥६ प्राण ॥ स० ॥ संघचैत्य प्रासादतणो जे, अवर्णवाद मन लेख्यो ॥ अव्य देवको जे वणसाड्यो, विणसंतां उवेख्यो रे ॥ ७ ॥ प्राण ॥सण॥ इत्यादिक विपरीतपणाश्री,समकित खंड्यु जेह ॥आजवण॥ मिला ॥जा प्राणी॥चारित्र व्यो चित्त आणी ॥ पांच समिति त्रण गुप्ति विराधि, आठे प्रवचन माय ॥ साधुतणे धर्मे परमादें, अशुभ वचन मन काय रे ॥॥ प्रा० ॥ चा ॥ श्रावकने धर्मे सामायिक, पोसहमां मन वाली॥ जे जयणापूर्वक जे आठे
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