Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 579
________________ स्तवनानि. एयए ते पहोता, अविचल तीरथ एह जी ॥ जशवंतसागर शिष्य पयंपे जिनें अवधते नेह जी ॥ती॥ ॥इति अष्टापद स्तवन ॥ ॥ अथ नेमराजुलनुं चोमासुं लिख्यते ॥ ॥ श्रावण वरसे रे स्वामी, मेली न जाशो अंतरजामी ॥ माता मेहुआ रे वरसे, प्रीतम एणी रीतें केम परवमशे ॥मारा सम जाउँ मां रे वहाला, लालच लागी तुमशुं लाला ॥ मा॥१॥ नादरवो जरजोरें गाजे, नदीयें नीर खलाखल वाजे ॥ धरती शोने नीलाचर साही, वालम संयम ले जो परणी ॥ माण ॥॥ श्राशोयें आश घणेरी अमने, जीवन जावं न घटे तमने, आजूषण पहेरी परवरियां, सलूणा साहेब रंगें न रमिया ॥ मा॥ ३॥ कार्तिकें कंताजी शुं कहो बो, चतुर थश्ने शुं चूको बो ॥ जीवजीव नने सोलशें राणी, तेमां एके नहिं निर्वाणी ॥ रूपचंद बोले जे चोमासु, नेमजीने मन मलवानुं साचुं ॥ मा ॥४॥ ॥अथ समवसरणनुं स्तवन ॥ एक वार गोकुल आवजो ॥ . ॥ गीविंदजी ॥ ए देशी ॥ एक वार वउदेश श्रावजो ॥ जिणंद जी ॥ एक वार वलदेश श्रावजो॥द र्शन नयन ठहरावजो ॥ जिणंदजी ॥ एक वार आवजो ॥ जयंतीने पाय न मावजो ॥ जि० ॥ एक० ॥ वली समवसरण देखावजो ॥ जि०॥ एक ॥ ए आंकणी ॥ समवसरण शोना जे दीपी, दण दण सांजरी श्रावशे ॥जिण ॥ एक० ॥१॥ नूतल सुगंधीजल वरसावे, फुलना पगर जरावशे॥ जि०॥ कनक रतननो पीठ करीने, त्रिगडानी शोना रचावशे ॥ जि० ॥एक॥२॥ रूपानो गढ ने कनक कोशीशां, वच्चें रतन जडावशे ॥ जि ॥ रतनगढ़ें मणिनां कोशीशां, जगमग ज्योति दीपावजो ॥जी॥ एक ॥ चार छ वारें एंशी हजारा, शिवसोपान चढावजो ॥ जी० ॥ एक०॥३॥ देव चा रे कर आयुकधारी, उवारें खमा करे चाकरी ॥ जि ॥ एक ॥ दूर पा सथी एक समयें वंदे, जरंतीने लघु बोकरी ॥ जि० ॥ एक ॥४॥सह स्त्र योजन ध्वज चार ते जंचा, तोरण चज आठ वावमी ॥ जि ॥ एका मंगल आउने धूप घटामी, फूलमाला करपूतली ॥ जिगाएक॥ ५॥ श्रा उ सुरी बीजेगढछारें, रत्नगढें चल देवता ॥ जि ॥ एक ॥ जातिवै र बंमी पशुपंखी, तुऊपद कमलने सेवतां ॥ जि० ॥ एक० ॥६॥ पंचव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620