Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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स्तवनानि
५६२ पार ॥ जय० ॥ घाटीनी आंटी घणी ॥ म ॥ अटवी पंथ अपार ॥ जश्न ॥५॥ कोडी सोनैये काशीदी ॥ महा ॥ करनारो नहिं कोय ॥ जश्न कांगलीयो केम मोकद्धं ॥ महा० ॥ होंश तो नित्य नवली होय ॥ जश्न ॥६॥ लखु जे जे लेखमां ॥ महा ॥ लाख गमे अनिलाष ॥ ज० ॥ तमे लेजामां ते लहो ॥ महा ॥ मुफ मन पूरे डे साख ॥ ज० ॥७॥ लोकालोक स्वरूपना ॥ महा० ॥ जगमां तुमें बो जाण ॥ जय० ॥ जाण श्रागें शुं जणावियें ॥ मह ॥ श्राखर अमें अजाण ॥ जय० ॥ ॥ वा चकजदयनी विनति ॥ महा०॥ ससीहर कह्या संदेश ॥ जय० ॥ मानी लेजो माहरी ॥ महा० ॥ वस्ती दूर विदेश ॥ जश् ॥ ए ॥ इति ॥
॥अथ श्री युगमंधर जिनस्तवन ॥ मधुकरनी देशीमां ॥ ॥ कायापामी अति कूडी, पांख नहीं रे आवं ऊमी, लब्धि नहिं कोय रूडी रे ॥ श्रीयुगमंधरने कहेजो ॥१॥ के दधिसुत विनतमी सुण जो रे ॥ श्रीयुग ॥ ए आंकणी ॥ तुम सेवामांहे सुर कोमी, ते हां आवे एक दोमी, आश फले पातक मोमी रे ॥ श्रीयुग ॥२॥ फुःख म समयमां श्णे जरतें, अतिशय नाणी नवि वरते, कहियें कहो कोण सांजलते रे ॥ श्रीयुग ॥३॥ श्रवणें सुखीया तुम नामें, नयणां दरि सण नवि पामे, ए तो ऊगडानो गंमें रे ॥ श्रीयुग ॥४॥ चार आंगल अंतर रहे,, शो कडलीनी परें पुःख सहेवू, प्रजु विना कोण आगल कहे यूँ रे ॥ श्रीयुग ॥ ५॥ महोटा मेल करि आपे, बेहुने तोल करी थापे, सजन जश जगमां व्यापे रे ॥ श्रीयुग ॥ ६ ॥ बेहुनो एक मतो थावे, केवल नाण जुगल पावे, तो सवि वात बनी आवे रे ॥ श्रीयुग ॥ ७॥ गजलंबन गजगतिगामी, विचरे विप्रविजय स्वामी, नयरी विजया गुण धामी रे ॥ श्रीयुग ॥७॥ मातासुतारायें जायो, सुदृढ नरपतिकुल आयो, पंमित जिनविजयें गायो रे ॥श्रीयुगए॥ इति युगमंधर जिन स्तवन ॥
॥अथ नेमिजिन स्तवन ॥ गरबानी देशीमां ॥ ॥ जश्ने रहेजो महारा वहालाजी रे, श्रोगिरनारने गोंख ॥ जश्ने॥ अमें पण तिहां आवशुं ॥ महाराण ॥ जिहारे पामीशुं जोख ॥ जश्॥१॥ जान लेई जूनेगढें ॥ महा० ॥ श्राव्या तोरण आप ॥ जय० ॥ पशुओं पेखी पाबा वल्या ॥ महा० ॥ जातां न दीधो जबाप ॥ ज० ॥२॥ सुंद
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