Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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५६०
प्रतिक्रमण सूत्र.
साध
र्णमयी जलथल केरां, फूल अमर वरसावता ॥ जि० ॥ एक० ॥ पर्षदा सात ते उपर बेसे, मुनिनर नारी देवता ॥ जि० ॥ एक० ॥ ७ ॥ आवश्य कटीकायें पण उत्तर, थाये न कुसुम किलामणी ॥ ज० ॥ एक वी वैमानिकनी देवी, उनी सुणे दोय तुरणी ॥ जि० ॥ एक० ॥ ८ ॥ बत्री श धनुष अशोक ते उंचो, चामर बत्र धरावजो ॥ जि० ॥ एक० ॥ चन मुख रयणसिंहासन बेसी, अमृतवयणां सुणावजो ॥ जि० ॥ एक० ॥ ॥ ए ॥ धर्मचक्र नामंगल तेजें, मिथ्यातिमिर हरावजो ॥ जि० ॥ एक० ॥ गणधर वाणी जब में सुणीयें, तब देवळंदें सुहावजो || जि० ॥ एक० ॥ १० ॥ देवतासुर कवि साचुंबोले, जिहां जाशो तिहां श्रावशे ॥ जिना ए क० ॥ रंजादिक अपरनी टोली, बंदी नमी गुण गावशे ॥ जि० ॥ एक० ॥ ११ ॥ अंतरजामी दूरें विचारो मुऊ चित्त जीनुं ज्ञानशुं ॥ जि० ॥ एक० ॥ हृदयकी जो दूरें जार्ज तो, कौतुक श्रमें मानशुं ॥ जि०॥ एक० | १२|| सुलसा दिक नव जिनपद दीधुं मशुं अंतर एवको ॥ जि० ॥ वीतराग जो नाम धरावो तो, सहुने सरिखा त्रेवमो ॥ जि० ॥ एक०|| १३ || ज्ञाननजरथी वात विचारो, रागदशा श्रम रूडी ॥ जि॥ एक० ॥ सेवक रागे साहेब रीके, धन धन त्रिशला मावमी ॥ जि० ॥ एक० ॥ १४ ॥ तुऊ विष सुरपति सघलातूसे, पण में श्रमणमा | जि० ॥ एक० ॥ श्रीशुजवीर हजूरें रहेतां, उत्सव रंग वधामणां ॥ जि० ॥ एक० ॥ १५ ॥ इतिसमवसरण स्तवन ॥ ॥ अथ सीमंधर जिनस्तवन ॥ रासमाना रागमां ॥
रूपैयो ते घालुं रोको, महारा बालाजी रे ॥ ए देशी ॥ मनडुंते महारुं मोकले, महारा बालाजी रे ॥ ससिहर साथै संदेश, जश्ने कहे जो महारा वाली रे ॥ कणी ॥ जरतना जक्तने तारवा ॥ महा० ॥ एक वार वने या देश ॥ ज० ॥ १ ॥ प्रभुजी वसो पुष्कलावती ॥ म हा० ॥ महाविदेहक्षेत्र मकार ॥ ज० ॥ पुरी राजें पुंरुरीगिणी ॥ महा० ॥ जिहां प्रनो अवतार ॥ ज० ॥२॥ श्रीसीमंधर साहिबा ॥ महा० ॥ वि चरंता वीतराग ॥ जइ० || परिबोहो बहुप्राणीने || महा० ॥ तेनो पामे कोण ताग ॥ ५० ॥३॥ मन जाणे कमी मनुं ॥ महा० ॥ पण पोतें नहिं पांख ॥ ज० ॥ जगवंत तुम जोवा जणी ॥ महा० ॥ अलजो धरे बे यांख रे ॥ ज० ॥ ४ ॥ दुर्गम महोटा डूगरां ॥ महा० ॥ नदी नालानो नहिं
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