Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 570
________________ प्रतिक्रमण सूत्र. त्रिविध वोसिरावियें ॥स॥ पापस्थान अढार तो ॥ शिवगति आराधना तो ॥ सा ॥ ए चोथो अधिकार तो ॥ए॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ हवे निसुणो यहां श्रावीया ए॥ ए देशी ॥ ॥जन्म जरा मरणें करी ए, ए संसार असार तो ॥ कस्यां कर्म सहुअनु जवे ए, कोश् न राखणहार तो ॥१॥ शरण एक अरिहंतनुं ए, शरण सिक जगवंत तो ॥ शरण धर्म श्रीजैननो ए, साधु शरणगुणवंत तो ॥ ५ ॥ अवरमोह सवि परीहरी ए, चार शरण चित्तधार तो ॥ शिवगति आराधन तणो ए, ए पांचमो अधिकार तो ॥३॥ श्रा नव परनव जे कस्यां ए, पापकर्म केश लाख तो ॥ आत्मसाखें निंदीयें ए,पडिक्कमियें गुरु साख तो ॥४॥ मिथ्यामति व वियां ए, जे जांख्यां उत्सूत्र तो ॥ कुमति क दाग्रहने वशे ए, वली उत्थाप्यां सूत्र तो ॥५॥ घड्यां घडाव्यां जे घ णां ए, घरटी हल हथीयार तो ॥ जव जव मेली मूकीयां ए, करतां जी व संहार तो ॥६॥ पाप करीने पोषियां ए, जनम जनम परिवार तो ॥ जन्मांतर पहोता पड़ी ए, कोन कीधी सार तो॥७॥ या नव परनव जे कस्यां ए, एम अधिकरण अनेक तो॥ त्रिविधं त्रिविधं वोसिरावीयें ए, आणी हृदय विवेक तो ॥ ७॥ उकृत निंदा एम करीए, पाप कस्यां परिहार तो ॥ शिवगति आराधनतणो ए, ए हो अधिकार तो ॥ ए॥ ॥ ढाल बही ॥ आदि तुं जोश्ने आपणी ॥ ए देशी ॥ ॥ धन्य धन्य ते दिन माहरो, जिहां कीधो धर्म ॥ दान शियल तपाद री, टाल्यां पुष्कर्म ॥ ध० ॥१॥ शत्रुजादिक तीर्थनी, जे कीधी यात्र ॥ युगतें जिनवर पूजीया, वली पोख्यां पात्र ॥ ध० ॥२॥ पुस्तक ज्ञान लखावियां, जिणहर जिणचैत्य ॥ संघ चतुर्विध साचव्या, ए साते क्षेत्र॥ ॥ध० ॥३॥ पमिकमणां सुपरें कस्यां, अनुकंपा दान ॥ साधु सूरि उवद्या यनें, दीधा बहुमान ॥ध ॥४॥ धर्मकारज अनुमोदियें, इम वारं वार ॥ शिवगति आराधनतणो, सातमो अधिकार ॥ ध० ॥ ५॥ नाव नलो म न आणीयें, चित्त आणी गम ॥ समतालावें नावियें, ए आतमराम ॥ध० ॥ ६ सुख दुःख कारण जीवने, कोश् अवर न होय ॥ कर्म आ प जे आचस्यां, जोगवियें सोय ॥ध ॥ ७ ॥ समता विण जे अनुसरे, प्राणी पुण्यकाम ॥ बार उपर ते लीपणुं, कांखर चित्राम ॥ध ॥ ७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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