Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 574
________________ նստ प्रतिक्रमण सूत्र. नव रुचे, जेम करहाने द्वाख ॥ ५ ॥ पाडा परें महोटा थया, कन्या न दिये को || शेव कहे सुण सुंदरी, ए तुऊ करणी जोय ॥ ६ ॥ त्रटकी नांखे जामिनी, बेटा बापना होय ॥ पुत्री होये मातनी, जाणे बे सहु कोय ॥ ७ ॥ रे रे पापिणी! सापिणी, सामा बोल म बोल ॥ रीसाली कहे ताहरो, पा पी बाप निटोल ॥८॥ शेठें मारी सुंदरी, काल करी तत खेव ॥ ए तुम बे टी उपनी, ज्ञानविराधन देव ॥ ए ॥ मूर्द्धागत गुणमंजरी, जातिस्मरण पा मी ॥ ज्ञानदिवाकर साचो, गुरुने कहे शिर नामि ॥१०॥ शेठ कडे सुणो स्वामी, केम जाये ए रोग | गुरु कहे ज्ञान आराधो, साधो, वांबित यो ग ॥ ११ ॥ उज्ज्वल पंचमी सेवो, पंच वरस पंच मास ॥ नमो नाणस्स गण गणो, चोविहार उपवास ॥ १२॥ पूरव उत्तर सन्मुख, जपियें दोय ह जार | पुस्तक गल ढोइयें, धान्य फलादि उदार || १३ || दीवो पंचदीव ट तो, साथियो मंगलगेह ॥ पोसह मान करी शके, तिणिविध पारण एह ॥ १४ ॥ अथवा सौजग्यपंचमी, उज्ज्वल कार्त्तिक मास ॥ जावजीव लगें सेवियें, उजमणां विधि खास ॥ इति ॥ १५ ॥ ॥ ढाल चोथी | एकवीशानी देशी मां ॥ पा ढाल | पांच पोथी रे, ठवणी पाठां विटांगणां ॥ चाबखी दोरा रे, टी पाटला वतरणां ॥ मशी कागल रे, कांबी खडीया लेखणी ॥ कवली मा बली रे, चंडुवा ऊरमर पुंजणी ||१|| त्रुटक ॥ प्रासाद प्रतिमा, तास मूख ए, केसर चंदन, मावली ॥ वासकूपी, वालाकूंची, अंगणां, बावडी ॥ कलश थाली, मंगलदीवो, आरती ने, धूपणां चरवला मुहपत्ति, साहम्मी वछल, नोकरवाली, थापना ||२|| ढाल || ज्ञान दरिसण रे, चरणनां साध न जे कां ॥ तपसंत रे, गुणमंजरीयें सद्दह्यां ॥ नृप पूढे रे, वरदत्त कुंव रने अंग रे ॥ रोग उपनो रे, कवण कर्मना जंग रे ॥ ३ ॥ त्रुटक ॥ मुनि राज जासे, जंबुद्वीपें, जरतसिंहपुर, ग्राम ए ॥ व्यवहारी वसु, तास नं दन, वसुसार वसुदेव, नाम ए ॥ वनमांहे रमतां, दोय बांधव, पुण्ययोगें, गुरु मया ॥ वैराग्य पामी, जोग वामी, धर्मधामी, संवया ॥ ४ ॥ ढाल ॥ लघुबांधव रे, गुणवंत गुरु पदवी लहे || पणसय मुनिनी रे, सारण वारण नितु दिये ॥ कर्मयोगें रे, अशुन उदय यो अन्यदा । संथारे रे, पोरिसी जणी पोढ्यो यदा ॥ ५ ॥ त्रुटक ॥ सर्वघाती, निंद व्यापी, साधु मागे, वां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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