Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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स्तवनानि.
| ԱԱԻ चणा ॥ जंघमां अंतराय थातां,सूरि हवा दूमणा ॥ ज्ञान उपर,द्वेष जाग्यो लाग्यो मिथ्या,नूतडो॥ पुण्य अमृत, ढोली नाख्यु, नस्यो पाप, ताणो घमो ॥६॥ ढाल ॥ मन चिंतवे रे, कां मुझ लाएं पाप रे ॥ श्रुत अच्यासो रे, तो एवमो संताप रे ॥ मुऊ बांधव रे, जोयण सयण सुखें करे॥ मूरखना रे, आठ गुण मुख उच्चरे ॥॥त्रु॥ बार वासर, कोश मुनिने, वायणा, दी धी नहीं ॥ अशुल ध्याने, आयु पूरी, नूप तुऊ नंदन सही ॥ ज्ञानविराध न, मूढजमपणुं, कोढनी वेदन लही ॥ वृक्षबांधव, मानसरवर, हंसगति, पाम्यो सही ॥०॥ ढाल ॥ वरदत्तने रे, जातिसमरण उपनो ॥ नव दीगे रे, गुरु प्रणमी कहे शुलमनो ॥ धन्य गुरुजी रे,झान जगत्रय दीवडो॥ गु ण अवगुण रे, नासन जे जग परवडो ॥ ए त्रु ॥ ज्ञान पावन, सिकि साधन, ज्ञान कहो केम, श्रावडे ॥ गुरु कहे तपथी, पाप नासे, टाढ जेम, घन तावडे ॥ नूप पत्नणे, पुत्रने प्रजु, तपनी शक्ति, न एवडी ॥ गुरु कहे पंचमी, तप आराधो, संपदा ख्यो, बेवमी ॥ १० ॥ इति ॥
॥ ढाल पांचमी ॥ मेंदी रंग लागो ॥ ए देशी ॥ सगुरु वयणां सुधारसें रे, नेदी साते धात ॥ तपशुं रंग लागो॥ गुणमंज री वरदत्तनो रे, नागे रोग मिथ्यात्व ॥ त ॥१॥ पंचमी तप महिमा घ णो रे, पसयो महियलमांहि ॥ त ॥ कन्या सहस सयंवरा रे, वरदत्त परएयो त्यांहि ॥त ॥२॥ नूपें कीधो पाटवी रे, आप थयो मुनिन्नूप ॥त॥नीम कांति गुणें करी रे, वरदत्त रवि शशिरूप ॥त॥३॥राजरमा रमणी तणारे, नोगवे लोग अखंग ॥ त० ॥ वरसें वरसें ऊजवे रे, पंचमी तेज प्रचंमत॥४॥जुक्तनोगी थयो संयमी रे, पाले व्रत षटकाय ॥ त०॥ गुणमंजरी जिनचंडने रे, परणावे निजताय ॥ तम् ॥ ५॥ सुख विलसी थर साधवी रे, वैजयंतें दोय देव ॥ त० ॥ वरदत्त पण उपनो रे, जिहां सीमंधर देव ॥त॥६॥ अमरसेन राजाघरें रे, गुणवंत नारी पेट ॥ताल दणलक्षित रायने रे, पुण्यें कीधो नेट ॥ त ॥७॥ शूरसेन राजा थयो रे, सो कन्या जार ॥ त ॥ सीमंधर स्वामी कने रे, सुणी पंचमी अधि कार ॥ तम् ॥॥ तिहां पण ते तप आदमु रे, लोक सहित नूपाल ॥त॥ दश हजार वरसां लगें रे, पाले राज्य उदार ॥ त०॥ए॥ चार महावत चोंपशुं रे, श्रीजिनवरनी पास ॥त॥ केवल धरि मुक्तं गयो रे, सादि अ
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