Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
५५६
प्रतिक्रमण सूत्र. नंत निवास ॥त॥१॥ रमणीविजय शुजापुरी रे, जंबु विदेह मकार ॥त॥ अमरसिंह महिपालने रे, अमरावती घर नार ॥ त ॥ ११ ॥ वैजयंत थकी चवी रे, गुणमंजरीनो जीव ॥ता मानसरस जेम हसलो रे, नाम धयुं सुग्रीव ॥ त ॥ १२ ॥ वीशे वरसें राजवी रे, सहस चोराशी पुत्र ॥ता लाख पूरवसमता धरे रे, केवलज्ञान पवित्र ॥ त ॥१३ ॥ पंचमी तप महिमाविषे रे, नांखे निज अधिकार ॥ त०॥ जेणे जेहथी शिव पद लद्यु रे तेहने तस उपकार ॥ त० ॥ २४ ॥ इति ॥
॥ ढाल बही ॥ करकंठने करूं वंदणां ॥ ए देशी ॥ चोवीश दमक वारवा ॥ हुँ वारी लाल ॥ चोवीशमो जिनचंद रे ॥ हुँ वारी लाल ॥ प्रगव्यो प्राणांत खर्गयी ॥ हुं० ॥ त्रिशला उर सुखकंद रे ॥ हुं० ॥१॥ महावीरने करुं वंदना ॥ हुं० ॥ ए आंकणी ॥ पंचमी गतिने साधवा ॥ ९ ॥ पंचम नाण विलास रे॥ हुं० ॥ महानिशीथ सिद्धांतमां ॥हुं॥ पंचमी तप प्रकाश रे ॥ हुँ॥२॥ अपराधी पण उछस्यो ।हुं॥ चंग कोशीयो साप रे ॥ हुँ ॥ यज्ञ करंता बांजणा ॥हुं॥ सरखा कीधा आप रे ॥ हुँ० ॥३॥ देवानंदा ब्राह्मणी ॥हुं॥ रिखजदत्त वली विप्र रे ॥ हुं० ब्याशी दिवस संबंधथी ॥ ९० ॥ कामित पूस्यो क्षिप्र रे ॥ ९ ॥४॥ कर्म रोगने टालवा ॥ हुँ ॥ सवि औषधनो जाण रे ॥ ढुं० ॥ आदस्यो में आशा धरी ॥ हुं० ॥ मुऊ ऊपर हित आणी रे ॥ हुँ ॥ ५॥ श्रीविजय सिंह सूरीशनो ॥ हुँ ॥ सत्यविजय पंन्यास रे ॥९॥ शिष्य कपूर विजय कवि ॥९॥ चंद्रकिरण यश जास रे॥हुं॥६॥ पास पंचासरा सान्निध्ये ॥हुं॥ खिमाविजय गुरुनाम रे ॥ हुँ ॥ जिनविजय कहे मुझ हजो ॥ ९० ॥ पं चमी तप परिणाम रे ॥ ९ ॥ ७॥ कलश॥श्य वीर लायक, विर्श्वनायक, सिकिदायक, संस्तव्यो ॥ पंचमी तप सं, स्तवन टोमर, गूंथी निज, कंवें
व्यो ॥ पुण्यपाटण, क्षेत्रमांहे, सत्तर त्राएं, संवत्सरें ॥ श्रीपार्श्वजन्म, कल्याण दिवसें, सकल नवि, मंगल करे ॥॥ इति श्रीपंचमीदिनस्तवनं ॥
॥अथ आदि जिनस्तवनं ॥ गरबानी देशीमां ॥ आदिजिणंद अरिहंत जी ॥ प्रनु अमने रे ॥ तुमें द्यो दरिसन महाराज ॥ शुं कहुं तुमनें रे ॥ आठ पहोरमां एक घमी ॥ ॥ लाग्युं तमाळं ध्या न ॥ शुं॥१॥ मधुकरने मन मालती ॥ प्र॥ जिम मोराने मन मेह
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620