Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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स्तवनानि.
५५२ जाव नली परें नावियें, ए धर्मनो सार ॥ शिवगति आराधन तणो, ए आठमो अधिकार ॥ ध० ॥ ए ॥ इति ॥ . ॥ ढाल सातमी ॥ रेवतगिरि ऊपरें ॥ ए देशी ॥
॥ हवे अवसर जाणी, करिय संलेषण सार॥अणसण श्रादरियें, पच्चरकी चार आहार ॥ लबुता सवि मूकी, बांकी ममता अंग ॥ ए बातम खेले, समता शान तरंग ॥१॥ गति चारे कीधा, आहार अनंत निःशंक ॥ पण तृप्ति न पाम्यो, जीव लालचियो रंक ॥ उलहो ए वली वली, अणसणनो परिणाम ॥ एथी पामीजें, शिवपद सुरपद गम ॥२॥ धन धना शालि जड, खंधो मेघकुमार ॥ अणसण आराधी, पाम्या नवनो पार ॥ शिवमं दिर जाशे, करी एक अवतार ॥ आराधन केरो, ए नवमो अधिकार ॥३॥ दशमे अधिकारें, महामंत्र नवकार ॥ मनश्री नवि मूको, शिवसुख फल सहकार ॥ ए जपतां जाये, उर्गति दोष विकार ॥ सुपरें ए समरो, चउद पूरवनो सार ॥॥ जन्मांतरें जातां, जो पामे नवकार ॥ तो पातक गाली, पामे सुर अवतार ॥ ए नव पद सरिखो मंत्र न कोई सार ॥ इह जवने परनवें, सुख संपत्ति दातार ॥ ५॥ जु नील नीलडी, राजा राणी थाय ॥ नवपद महिमाथी, राजसिंह माहाराय राणी रतनवती बेहु, पाम्यां बे सुरजोग ॥ एक नवथी लेशे, सिझिवधू संयोग ॥६॥ श्रीमती ने ए व ली, मंत्र फल्यो ततकाल ॥ फणिधर फीटीने, प्रगट थई फुलमाल ॥ शिवकुमरें योगी, सोवनपुरिसो कीध ॥ एम एणे मंत्र, काज घणानां सीध ॥ ७॥ ए दश अधिकारें, वीर जिणेसर नांख्यो ॥ आराधन केरो, विधि जेणे चित्तमा राख्यो ॥ तेणें पाप पखाली, जवनय दूरे नाख्यो । जिन विनय करंतां, सुमति अमृतरस चाख्यो ॥ ॥ इति ॥
॥ ढाल आठमी ॥ नमो नवि नावणुं ॥ ए देशी ॥ ॥ सिझारथ राय कुलतिलो ए, त्रिशला मात मल्हार तो ॥ अवनीतलें तुमें अवतख्या ए, करवा अम उपगार ॥ १॥ जयो जिन वीरजी ए॥में अपराध कस्या घणा ए, कहेतां न लडं पार तो॥ तुम चरणे आव्या जणी ए, जो तारो तो तार ॥२॥ ज० ॥ आश करीने आवीयो ए, तुम चरणे महाराज तो ॥ याव्याने नवेखशो ए, तो केम रहेशे लाज ॥३॥ जणा कर्म श्रखूजण श्राकरां ए, जन्म मरण जंजाल तो ॥ हुं बुं एहथी ऊजग्यो
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