Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 565
________________ स्तवनानि. ५४५ पाणीजात आहारे रे ॥३॥॥ ममता बांकी देहनी, निर्लोनी निर्मायी रे॥ नवविध परिग्रह परिहरे, चित्तमें चिंते न कां रे ॥ ४ ॥ गुण ॥धर्मतणां उपकरण धरे, संयम पालवाकाजें रे ॥ नूमि जोई पगलां जरे, लोक वि रोधथी लाजे रे ॥ ५ ॥ गुण ॥ पमिलेहण निरति विधे, करे प्रमाद निवा री रे ॥ कालें शुद्धक्रिया करें, श्छा जोग निवारी रे ॥६॥ गुण ॥ वस्त्रा दिक शुरू एषणी, ले देखी सुविशेषे रे ॥ काल प्रमाणे खप करे,दूषण टल तां देखे रे ॥७॥ गुण॥ कुरकी संबल जे कयां, सान्निध्य केमही न राखे रे॥ दे उपदेश यथास्थितें, सत्यवचन मुख नांखे रे ॥ ॥ गुण ॥ तन महेलां मन ऊजलां, तप करी खीणी देही रे ॥बंधन बे बेदी करी, विचरे जन निःलेही रे ॥ ए॥ गुण ॥ एहवा गुरु जोई करी, आदरीयें शुन जावें रे ॥ बीजुं तत्त्व सुगुरुतणुं, ए जिनहर्ष कहावे रे ॥ १० ॥ गु०॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ कर्म न बूटे रे प्राणीया ॥ ए देशी ॥ ॥जवसायर तरवा लणी, धर्म करे हो सारंन ॥ पबर नावें रे बेसीने, तरवो समुल उर्लन ॥१॥ ज० ॥ आपे गोकुल गायनां, आपे कन्या रे दान ॥ आपे क्षेत्र पुण्यार्थे, ब्राह्मणने देश मान ॥२॥ न० ॥ खूटावे घाणी वली, पृथिवी दान सुप्रेम ॥ गोला कलशा रे मोरिया, आपे हल तिल हे म ॥३॥ ज० ॥ वली खणावे रे खांतशें, कूया सुंदर वाव ॥ पुष्करिणी क रणी नली, सरोवर सखर तलाव ॥ ४ ॥ न कंद मूल मूके नहीं, अ ग्यारशने हो दीस ॥ आरंज ते दिन अति घणो, धर्म किहां जगदीश ॥ ५॥ ना याग करे होमे तिहां, घोमा नर ने रे बाग । होमे जलचर मीमकां, धर्म किहां वीतराग ॥६॥ ना करे सदाये रे नोरता, जीवतणा आरंज ॥ हणे महिष ने बोकमा, जेहथी नरक सुलंन ॥ ७ ॥न॥ सारे सरावे ब्राह्मण कने, पूर्वजनां रे शराध ॥ तेमी पोषे रे कागमा, देखो एह उपाधि ॥॥ न॥ तीरथ जाय गोदावरी, गंगा गया प्रयाग ॥ न्हाये श्रण गल नीरमें, धर्म तणो नहिं लाग ॥णाला इत्यादिक करणी करे, परजव सु खने रे काज ॥ कहे जिनहर्ष मले नहीं, एहथी शिवपुरराज ॥१॥न॥ ॥ ढाल ही ॥रे जाया तुफ विण घमी रेड मास ॥ ए देशी ॥ ॥धर्म खरो जिनवर तणो जी,शिव सुखनो दातार ॥श्री जिनराजें प्रका शियो जी, जेहना चार प्रकार ॥१॥ नविक जन, ज्ञान विचारी रे जोय ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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