Book Title: Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 553
________________ स्तवनानि. ५३३ ॥अथ श्री सिझाचलजीन स्तवन लिख्यते ॥ ॥ आंखमीयें रे में आज शत्रुजय दीगे रे, सवा लाख टकानो दाहामो रे, लागे मुने मीगे रे॥ सफल थयो रे महारा मननो उमाहो,वाहाला महा रा जवनो संशय नांग्योरे ॥ नरक तिर्यंच गति दूर निवारी, चरणे प्रजुजीने लाग्यो रे ॥ शत्रुजय दीगो रे ॥१॥ ए आंकणी॥ मानव नवनो लाहो लीजें ॥ वा० ॥ देहडी पावन कीजें रे ॥ सोना रूपाने फूलडे वधावी,प्रेमें प्रददि णा दीजें रे ॥ शत्रु ॥ ॥ उघडे पखालीने केशरें घोली ॥वा॥ श्रीश्रा दीश्वर पूज्या रे ॥ श्री सिझाचल नयणे जोतां, पाप मेवासी ध्रुज्या रे ॥ शत्रु ॥३॥ श्रीमुख सैधर्मा सुरपति आगें ॥ वा ॥ वीर जिणंद एम बोले रे ॥त्रण्य नुवनमां तीरथ महोटुं, नहिं को शत्रुजय तोलें रे॥ श॥ ॥४॥ इंजसरीखा ए तीरथनी ॥वा॥ चाकरी चित्तमां चाहे रे ॥ कायानी तो कायर काढी, सूरजकुंममां नाहे रे ॥ श॥ ॥ ५ ॥कांकरे कांकरे श्री सिझदे॥ वा ॥ साधु अनंता सिझा रे ॥ ते माटें ए तीरथ महोटुं, उझार अनंता कीधा रे श॥ ॥६॥ नाजिराया सुत नयणें जोतां ॥वा॥ मेह अमीरस वूग रे ॥ उदयरत्न कहे आज महारे पोतें, श्री आदीश्वर तूग रे श॥ध्रु० ॥ सवा० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥अथ श्रीसिकाचल स्तवन ॥ ॥ विमलाचल नित्य वंदीयें, कीजें एहनी सेवा ॥ मानुं हाथ ए धर्मनो, शिवतरुफल लेवा ॥ वि० ॥१॥उजाल जिनगृहमंमली, तियां दीपे उत्तं गा ॥ मार्नु हिमगिरि विज्रमें, आई अंबरगंगा वि० ॥२॥ कोई अनेरे जग नहीं, ए तीरथ तोलें ॥ एम श्रीमुख हरि आगलें, श्रीसीमंधर बोले ॥विण ॥३॥ जे सधलां तीरथ कस्यां, यात्रा फल कहीयें ॥ तेहथी ए गिरि नेटतां, शतगणुं फल लहीयें ॥ वि० ॥ ४ ॥ जनम सफल होय तेहनो, जे ए गिरि वंदें ॥ सुजस विजय संपद लहे, ते नर चिर नंदे ॥वि॥५॥ ॥अथ श्रीसिद्धाचलजीनुं स्तवन ॥ देशी लालननी ॥ ॥ सिझगिरि ध्यावो नविका, सिझगिरि ध्यावो ॥ घेर बेगं पण बहे फल पावो नविका, बहु फल पावो ॥ ए अांकणी ॥ नंदीसर यात्रायें जे फल होवे, तेथी बमणेरुं फल पुंडरगिरि होवे ॥ ज० ॥ पुं ॥१॥ तिग णुं रुचकगिरि चोगणुं गजदंता, तेथी बमणेरुं फल जंबु महंता ॥ ज० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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