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प्रतिक्रमण सूत्र. रंगमां संपा जी ऊरकत, ध्यान अनुजव लेहरी ॥ के ॥ श्री शुजवरी विजय शिववहूने तो, घर तेडतां दोय घरी ॥ के० ॥ ए इति ॥
॥अथ श्री शंखेश्वरजीनुं स्तवन ॥ ॥अंतरजामी सुण अलवेसर, महिमा त्रिजग तुमारो ॥ सांजलीने श्राव्यो हुँ तीरें, जनम मरण फुःख वारो ॥१॥सेवक अरज करे ये राज, अमने शिवसुख आपो ॥ ए श्रांकणी ॥ सहुकोनां मनवांछित पूरो, चिंता सहुनी चूरो ॥ एहq बिरुद के राज तुमारूं, केम राखो बो दूरो ॥ से॥५॥ सेवकने वलवलतो देखी, मनमां महेर न धरशो ॥ करुणासागर केम कहे वाशो, जो उपकार न करशो ॥ से ॥३॥ लटपटनुं हवे काम नहीं बे, प्रत्यक्ष दरिसण दीजें ॥ धुंआडे धीजें नही साहिब, पेट पड्यां पती जे ॥ से ॥४॥ श्री शंखेश्वर मंगण साहिब, वीनतमी अवधारो ॥ कहे जिनहर्ष मया कर मुजने, नवसायरथी तारो ॥ से ॥५॥ इति ॥
॥अथ श्रीपार्श्वनाथजीनुं स्तवन ॥ ॥ सजनी मोरी पास जिणेसर पूजो रे ॥ स० ॥ जगमां देव न दूजो रे ॥ स ॥ सारंग पर शणगार रे॥ स॥प्रजा दोय प्रकार रे॥१॥स० ॥ जिनपडिमा जयकार रे ॥ स ॥वारी जाउं वार हजार रे ॥ ए आंकणी॥ ॥स०॥ गणधर सूत्रे वखाणी रे ॥ स ॥ सिद्धनी उपमा आणी रे॥स॥ समकितनी वृद्धिकारी रे ॥ स ॥ ते केम जाशे निवारी रे ॥ स ॥२॥ ॥ स० ॥ नगव अंगें धारो रे॥ स॥ चारण मुनि अधिकारो रे ॥ स ॥ जिनपमिमा जिनसरखीरे ॥ स ॥ सूत्र उववाई निरखी रे ॥ स० ॥३॥ ॥ स० ॥ रायपसेणी नांखी रे ॥ स ॥ जीवानिगमें दाखी रे ॥ स ॥ व्यवहारे पण आखी रे ॥ स ॥ शुकि पडिमा साखी रे ॥ स ४ ॥ ॥ स ॥ जंबूपन्नत्ति गणांग रे ॥ स॥ बोले दशमुं अंग रे ॥ लण ॥माहा निशीथें विचारो रे ॥ स० ॥ पूजानो अधिकारो रे ॥ स० ॥ ५॥ स० ॥ सातमे अंगें विख्यात रे ॥ स ॥ आणंद श्रावक वात रे ॥ स ॥ अन उनी पमिमा वारीरे ॥ स ॥ सूधा समकित धारी रे ॥ स० ॥६॥ स॥ झाता पाउ देखावे रे ॥ स ॥ कुमति नरम न जावे रे ॥सण॥ एम अने क सूत्र साख रे ॥ स ॥ कहो हवे केहनो वांक रे ॥ स० ॥७॥ स ॥ अर्चा अरोचक था रे ॥स ॥ नव दमकमां जाशे रे ॥ स ॥ जीव
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