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प्रतिक्रमण सूत्र.
॥ अथ सीमंधर जिन चैत्यवंदनं ॥
सीमंधर परमातमा, शिव सुखना दाता ॥ पुरकलवर विजयें जयो, सर्व जीवना त्राता ॥ १ ॥ पूर्वविदेह पुंरुरि गिणी, नयरीयें शोद्धे ॥ श्रीश्रेयांस राजा तिहां, जवियानां मन मोहे ॥ २ ॥ चउद सुपन निर्मल लही, स राणीमात ॥ कुंथु र जिन अंतरे, श्री सीमंधर जात ॥ ३ ॥ अ नुक्रमें प्रभु जनमीया, वली यौवन पावे ॥ मात पिता हरखें करी, रूकमि णी परणावे ॥ ४ ॥ जोगवी सुख संसारनां, संयम मन लावे ॥ मुनिसु व्रत नमितरें, दीक्षा प्रभु पावे ॥ ५ ॥ घाती कर्मनो क्षय करी, पाम्या केवल ना ॥ रिखन लंबनें शोजता, सर्व जावना जाण ॥ ६ ॥ चोराशी जस गणधरा, मुनिवर एकशो कोड ॥ त्रण भुवनमां जोयतां, नहीं कोय एहनी जोड || || दश लाख कह्या केवली, प्रभुजीनो परिवार || एक स मयत्रण कालना, जाणे सर्व विचार ||८|| उदयपेढाल जिनांतरें ए, याशे जिनवर सिद्ध || जसविजय गुरु प्रणमतां, शुजवांबित फल ली || ||
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॥ अथ सीमंधरचैत्यवंदनं ॥
॥ श्रीसीमंधर जगधणी, या जरतें यावो ॥ करुणावंतकरुणा करी, म ने वंदावो ॥ १ ॥ सकल जक्त तुमो धणी ए, जो होवे अम नाथ ॥ जवो जव हुं हुं ताहरो, नहिं महेलुं हवे साथ ॥ २ ॥ सयल संग ढंकी करी ए, चारित्र लेई ॥ पाय तुमारा सेवीने, शिव रमणी वरीशुं ॥ ३ ॥ ए जो मुने घणो ए, पूरो सीमंधर देव ॥ इहां थकी हुं विननुं, अवधारो मुजसेव॥४॥
॥ अथ वीश स्थानकनुं चैत्यवंदन ॥
पहेले पद अरिहंत नमुं, बीजे सर्व सिद्ध ॥ त्रीजे प्रवचन मन धरो, चार सिद्ध || १ || नमो थेराणं पांचमे, पाठक गुण बठे ॥ नमो लोए सबसाहुणं जे बे गुण गरीठे ॥ २ ॥ नमो नापस्स आवमे, दर्शन मन जा वो ॥ विनय करी गुणवंतनो, चारित्रपद ध्यावो ॥ ३ ॥ नमो बंजवयधा रिणं, तेरमे किरियाणं ॥ नमो तवस्स चउदमे, गोयम नमी जिणाणं ॥४॥ चारित्र ज्ञान सुस्सने ए, नमो तिस्स जाए । जिन उत्तम पदपद्मने, नमतां होय सुखखाणी ॥ ५ ॥ इति ॥ ११ ॥
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