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प्रतिक्रमण सूत्र.
करुं जुहार ॥ ८ ॥ त्रण जुवनमांही वली ए, नामादिक जिन सार ॥ सिद्ध अनंता वंदीयें, महोदय पद दातार ॥ इति ॥ १४ ॥
॥ अथ बीजनुं चैत्यवंदन ॥
॥ विध धर्म जिणे उपदिश्यो, चोथा छाजिनंदन ॥ बीजें जन्म्या ते प्रभु, जवडुःख निकंदन ॥ १ ॥ डुविध ध्यान तुम्हें परिहरो, आदरो दोय ध्यान ॥ एम प्रकाश्युं सुमति जिनें, ते चविया बीज दिन ॥२॥ दोय बं धन राग द्वेष, तेहनें जवि तजीयें ॥ मुऊ परें शीतल जिन कहे, बीज दि न शिव नजीयें ॥ ३ ॥ जीवाजीव पदार्थनुं, करो ना सुजाण बीज दिनें वासुपूज्य परें, लहो केवल नाए ॥ ४ ॥ निश्चय नय व्यवहार दोय, एकां त न ग्रहियें ॥ घर जिन बीज दिनें चवी, एम जन आगल कहियें ॥५॥ वर्त्तमान चोवीशीयें, एम जिन कल्याण ॥ वीज दिनें के पामीया, प्रजु नाण निर्वाण ॥ ६ ॥ एम अनंत चोवीशीयें ए, हुआ बहु कल्याण ॥ जिन उत्तम पदपद्मने, नमतां होय सुख खाए ॥ ७ ॥ इति ॥ १५ ॥
॥ अथ ज्ञानपंचमीनुं चैत्यवंदन ॥
॥ त्रिगडे बेठा वीरजिन, जांखे जविजन यागें । त्रिकरणशुं त्रिहुं लोक जन, निसुणो मन रागें ॥ १ ॥ राहो नली जातसें, पांचम अजुवा ली ॥ ज्ञान आराधन कारणें, एहज तिथि निहाली ॥ २ ॥ ज्ञान विना पशु सारिखा, जाणो इस संसार ॥ ज्ञान आराधनथी लधुं शिवपद सुख श्रीकार ॥३॥ ज्ञान रहित किरिया कही, काशकुसुम उपमान ॥ लो कालोक प्रकाशकर, ज्ञान एक परधान ॥ ४ ॥ ज्ञानी श्वासोश्वासमें, करे कर्मनो खेह ॥ पूर्व कोमी वरसां लगें, ज्ञानें करे तेह ॥ ५ ॥ देश आरा धक क्रिया कही, सर्व राधक ज्ञान ॥ ज्ञान तणो महिमा घणो, अंग पांच मे जगवान ॥ ६ ॥ पंच मास लघु पंचमी, जावजीव उत्कृष्ट ॥ पंच वरस पंच मासनी, पंचमी करो शुनदृष्टि ॥ ७ ॥ एकावनही पंचनो ए, काउ रसग्ग लोगस्स केरो ॥ उजमणुं करो जावशुं टाले जव फेरो ॥ ८ ॥ एणी पेरें पंचमी राही यें ए, आणी जाव अपार ॥ वरदत्त गुणमंजरी परें, रंगविजय लहो सार ॥ ए ॥ इति ॥ १६ ॥
॥ अष्टमीनुं चैत्यवंदन ॥
॥ माहा शुदी आमने दिनें, विजयासुत जायो ॥ तेम फागुणशुदि
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