________________
गुरुवंदन जाय अर्थसदित.
४७
दुइ के० ) सामा ण ने बीजो ( तेरस के० ) तेर (करे के०) हायनुं जा वं. तेमां स्वपद ते पोतामां साधु साधुमां ने बीजा श्रावक जाणवा. त या परपक्ष ते साधु ने साध्वी तथा श्राविका जाणवी. तेमां साधु साधुने तथा श्रावकने मांहोमां हे सामा त्रण हाथ वेगलो अवग्रह होय ने गुर्वा दिकथी साध्वी तथा श्राविकाने तेर हाथ वेगलो अवग्रह होय. तेमज सा
तथा श्राविकाने मांहो मांडे सामा त्रण हाथनो अवग्रह होय ( त ho) तेटला मांडे (अन्नायस्स के० ) गुरुनी अनुज्ञा लीधा विना (सया के० ) सदा निरंतर ( पविसेनं के० ) प्रवेश करवाने वली (नकप्पए के०) न कल्पे. ए बेअवग्रहनुं शोलमुं द्वार थयुं. उत्तर बोल १६१ यया ॥ ३१ ॥ हवे वांदणांना सूत्रांना अक्षरनी संख्यानुं सत्तरमुं द्वार तथा पदनी संख्यानुं श्रढारमुं द्वार कहे बे.
पण तिग बारस डुग तिग, चनरो बाण पय इगुणतीसं ॥ गुण तीस सेस याव, स्सयाई सङ्घपय अडवन्ना ||३२|| दारं ॥ १७॥१८॥
अर्थः- प्रथम वंदनक सूचना अक्षर ( २२६ ) बे. तेमां लघु अक्षर ( २०१ ) बे, ने गुरु अक्षर तो श्वामिश्री मांगी ने वो सिरामि पर्यंत पच्चीश बेलखे बे, बाजा ग्ग को प्प क ना ऊं क कत्ती न वा कक क व व बो व म्मा कस्स क प्पा. ए पचीश अक्षर गुरु जाणवा एटले सत्त रमुं वंदनक सूचना अक्षरोनुं द्वार थयुं. उत्तर बोल ( ३०७ ) थया.
हवे अढारमुं वंदनक सूचना पदनी संख्यानुं द्वार गाथाना ख कहे . तिहां 'विजयंतं पदं' एटले विनक्ति जेना अंतमां होय तेने पढ़ कही ये ते इहां वंदनक सूत्रना व स्थानक मध्ये सर्व मली अठावन पदनी संख्या a, तिहां प्रथम स्थान मां इछामि, खमासमणो, वंदिनं, जावणिकाए, निसी हियाए, ए ( पण के० ) पांच पद जाएवां.
तथा बीजा स्थानकमां अणुजाह, मे, मिउग्गहं, ए ( तिग के० ) त्रण पद जाणवां, तथा त्रीजा स्थानक मध्ये निसी हि, अहो, कार्य, काय संफासं, खमणिको, जे किलामो, अप्प किलंताणं, बहुसोने, जे दिवसो, वई कंतो, ए (बारस के०) बार पढ़ जाणवां, तथा चोथा स्थानकमां जत्ता, ने, ए ( डुग के० ) बे पद जाणवां तथा पांचमा स्थानकमां जव पिऊं, च, ने,
५८
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org