________________
देववंदन नाष्य अर्थसहित.
४०५ २ ते अंगीकार कृत वस्तुनें उपजाववाना कारण रूप इरियाव हियाए विराहणाए बे पदनी बीजी (निमित्तं के०) निमित संपदा जाणवी.
३ सामान्य प्रकारे प्रायश्चित्त उपजाववा रूप गमणागमणे ए एक प दनी त्रीजी (उहे के०) उघ एटले सामान्य हेतु संपदा जाणवी. ए जीव हिंसा उपजाववानो सामान्य हेतु गमनागमन बे. __४ जीवहिंसाना विशेष हेतु रूप एटले विशेषपणे प्राण बीजादिक
आक्रमण रूप ते पाणकमणे, बीयकमणे, हरियकमणे, उसा उत्तिंग पण ग दगमट्टीमकमा संताणा संकमणे, ए चार पदनी चोथी (इअरहेउके०) श्तरहेतु एटले विशेष हेतु संपदा जाणवी. जे सामान्यथी इतर ते विशे ष होय; माटे विशेष हेतु ए, नाम जाणवू.
५ समस्त जीवना परिताप रूप जीव विराधना संग्रह रूप ते जे मे जी वा विराहिया ए एकपदनी (पंच के०) पांचमी (संगहे के)संग्रह संपदा.
६ एकेडियादिक पांच जीवने देखाडवा रूप जीवनेद ५६३ प्रमुख क थन रूप एगिदिया, बेदिया, तेदिया, चरिंदिया, पंचिंदिया, ए पांच पदनी बही ( जीव के०) जीव संपदा जाणवी. ___७ ते जीवादिक नेदने परितापना विराधना रूप ते अनिहयाथी मां मीनें तस्स मिलामि मुक्कम लगें अगीयार पदनी सातमी (विराहण के०) विराधना संपदा जाणवी. ___प्रायश्चित्तविशोधनकरण रूप ते तस्सउत्तरी करणेणंथी मांगीने ग मि काउस्सग्गं लगें न पदनी आग्मी (पमिकमण के०)प्रतिक्रमण संपदा.
(नेय के०) ए नेदथकी. ए मांहे प्रथमनी पांच संपदा ते इरियाव हिनी मूल संपदा जाणवी, अने पाउलनी (तिन्नि के०) त्रण संपदा ते रिया वहिनी ( चूलाए के) चूलिकारूप जाणवी ॥ ३३ ॥
हवे नमुनुणंनी प्रत्येक संपदाना पदनी संख्या तथा आदिपद कहे बे. उति चन पण पण पण, चन तिपय सक्कथय संपयाइपया॥ नमु आग पुरिसो, लोग अन्नय धम्मऽप्प जिण सवं ॥३४॥
अर्थः-पहेली (3 के०) बे पदनी, वीजी (ति के० ) त्रण पदनी, त्रीजी (चन के ) चार पदनी, चोथी (पण के) पांच पदनी, पांचमी (पण
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org