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गुरुवंदन जाय अर्थसदित.
fine. केटलाएक एम कहे बे के कारण विना प्रधान सरस श्राहार लीये तेने पिंक कहियें तथा बर्हेतालीश दोष आहारना न राखे, वारंवार आहार लीये तथा जमणवार, विवाह ने प्राणामां शि खंकि जोतो फरे, आहारनी लालचें मुखें कहे. तिहां निमित्त दोष न हो य, सूजतो होय ते माटे. तथा सूर्य थमता उगताथी मांगी जमे, मांग
ये आहार न करे, सन्निधि राखे, पोतानी निश्रायें औषधादिकालगुं गृहस्थने घरे मूकावे, द्रव्यादिक सहित विचरे, तथा ज्ञानद्रव्यादिक मिषें करी स्वनिश्रायें ज्ञानादि जंगारनां नाम लेई, पुस्तकादि संग्रहे, द्रव्यादि सहित विचरे, मुखें कड़े में निग्रंथ ढैयें पूर्व साधु समान गर्व राखे. इत्या दिक अनेक प्रकारें साधु लक्षणथी विपरीत होय ते देश पासो जाणवो.
तथा जे सर्वथा ज्ञान, दर्शन ने चारीत्रथी अलगो रहे, केवल लिं गधारी, वेषविरुंबक, गृहस्थाचार धारी होय, ते सर्वथी पासो जाणवो.
बीजो जे क्रियामार्गने विषे शिथिलता करे, अथवा खेद पामे तेने उ सन्नो कहीये; तेना वे नेद बे. एक देशथी अवसन्नो ने बीजो सर्वर्थ । व्यवसन्नो तिहां जे यावश्यक, प्रतिक्रमण, देववंदनादि, सजाय ते पठन पाठ नादि, पडिलेह, मुखवस्त्रिका, वस्त्रपात्रादि, जिक्षा ते गोचरी कालादि, ध्यान ते धर्मध्यानादि, अक्तार्थ ते तप नियम निग्रहादि श्रागमन ते बाहेरथी उपाश्रयमां प्रवेशलक्षण, निसिहिया ते पग पूंजवादि निर्गमन ते प्रयोजनविना उपाश्रयर्थी बाहेर निकलवा लक्षण, स्थान ते कायोत्सर्गादि, निषीदन ते बेसकुं, तुयइण ते त्वग्वर्तन एटले शयन इत्यादिक, दशविध चक्रवाल साधु समाचारी, तथां उघ पद विजाग सामाचारी प्रमुख विधि संयुक्त न करे, अथवा बी अधिक करे अथवा कषाय कंक सहित करे, अथवा राजवेवनी परें करे जय मानीने करे तथा गुर्वादिना वचन सांजले, डुमणो थइने वचन खंगन करे, आक्रोश करे, इत्यादिक लक्षणें करी देश व्यवसन्नो जावो.
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अने सर्व की अवसन्नो तो चोमासा विना शेषकालें पाट, बाजोव, निष्कारण संथारे, सेवे, स्थापना पिंग जमे. संथारो पाथस्यो राखे, प्रानृतिकादि दोष जमे. इत्यादिक लक्षणें सर्व अवसन्नो जावो.
त्री जो जेनुं कुत्सित, निंदनीय मातुं शील एटले आचार होय, तेने कु
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