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देववंदन नाष्य अर्थसहित. ४१३ दमक कहियें. पांचमु सिकाणंबुझाणंने ( सिमलय के ) सिहस्तव दंग क कहियें. ए पांच दंमकना नामर्नु अगीयारमुं हार कह्यु. सर्व मली उ त्तर बोल १९७५ थया ॥
हवे (श्व के०) ए पांच दमकने विषे देव वांदवाना
बार अधिकार बे, तेमनुं बार- हार कहे जे. तिहां प्रथम शक्रस्तव मध्ये ( दो के० ) बे अधिकार , तथा बीजा अरिहंतचेश्याणंरूप चैत्यस्तवमध्ये (ग के० ) एक अधिकार बे, तथा त्रीजा नामस्तव एटले लोगस्सने विषे ( दो के० ) बे अधिकार , तथा चोथा श्रुतस्तव मध्ये ( दो के०) बे अधिकार , पांचमा सिझस्तवमध्ये (पंचय के ) पांच अधिकार . ए (कमेण के०) अनुक्रमें कहेवा. सर्व मली चैत्यवंदनने विषे (बारसअहिगारा के०) बार अधिकारो बे. ॥४१॥ हवे ए बार अधिकारनां धुरियानां पद एटले आद्यनां पद कहे बे. नमु जेश्अ अरिहं, लोग सब पुरक तम सिह जो देवा ॥
धिं चत्ता वेआ, वच्चग अदिगार पढम पया ॥४॥ अर्थः-(नमु के०) नमोलुणं ए पहेला अधिकार प्रथम पद जाणवू, (जेश्य के०)जेय अश्या सिझा एबीजा अधिकार-प्रथम पद जाणवू. तथा (अरिहं के०) अरिहंत चेश्याणं ए त्रीजा अधिकार- प्रथम पद जाणवू, (लोग के०) लोगस्स उजोयगरे ए चोथा अधिकारनुं प्रथम पद जाणवू. (सव के०) सबलोए अरिहंत चेश्याणं ए पांचमा अधिकारनुं प्रथम पद जाणवू, ( पुरस्क के०) पुरकरवरदीव ए बहा अधिकारनुं प्रथम पद जा णवू, (तम के०) तमतिमिर पमल विसणस्स ए सातमा अधिकारनुप्र थम पद जाणवू, (सिझ के०) सिझाएं बुझाणं ए आठमा अधिकारनुं प्र थम पद जाणवू, (जोदेवा के०) जो देवाणविदेवो ए नवमा अधिकार, प्रथम पद जाणवू, (नधिं के०) उचित सेल सिहरे ए दशमा अधिकारनु प्रथम पद जाणवु (चत्ता के०) चत्तारि अह दस दोय, ए अगीयारमा अ धिकारनुं प्रथम पद जाणवू, (वेत्रावञ्चग के०) वेत्रावच्चगराणं ए बारमा अधिकारनु प्रथम पद जाणवू ए बार (अहिगार के०) अधिकारोना (पढ मपया के०) पहेलां पद एटले आदिनां पद धुरियां जाणवां ॥ ४५ ॥
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