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प्रतिक्रमण सूत्र.
हवे पूर्वे कला श्लोकमां नामग्रहण करीने उद्घोष करवो एम जे कयुं, तेही नामो कहे बे.
श्री श्रमण संघस्य शांतिर्भवतु, श्री पौरजनस्य शांति जवतु, श्रीजनपदानां शांतिर्भवतु, श्रीराजाधिपानां शांतिर्भवतु, श्रीराजसन्निवेशानां शांतिर्भवतु, श्री गोष्टिकानां शांतिर्भवतु, श्रीपुरमुख्याणां शांतिर्भव तु, श्रीब्रह्मलोकस्य शांतिर्भवतु, नैं स्वादा स्वादा ॐ श्री पार्श्वनाथाय स्वाहा ॥
अर्थ:- सुशोजित एवा श्रमण संघनी विघ्ननिवृत्तिरूप शांति था, तथा पुरने विषे वसनाएं लोकोनी विघ्नोपशमरूप शांति था. तथा जनपद जे देश तेनी विघ्नोपशमरूप शांति था. तथा राजा ने अधिपति तेनी शांति था, तथा राजाना उपदेशनस्थानक जे सन्निवेश, तेनी विघ्नोप रामरूप शांति था, तथा गोष्ठिकानां एटले धर्मसमास्यजनो तेमनी कषायो दयोपशमरूप शांति था, तथा पुरना मुख्य जे पुरुषो तेमनी विघ्नोपशमरूप शांति या ब्रह्मलोक जे बे तेनी विघ्नोपशमरूप शांति था. पहेली वार नुं स्वाहा ए पद जेबे, ते मंगलार्थ बे, तथा बीजी वारनुं ॐ स्वाहा जे पद बे, ते रूडे प्रकारें देवाने कहे बे, तथा ( ॐ श्री पार्श्वनाथाय स्वाहा के ० ) कुंकुम, चंदन, विलेपन, पुष्प, अक्षत, धूप, दीपादिक, पूजानां उपकरण श्री पार्श्वनाथने संतोषने माटें थाई ॥
हवे ते शांतिपाठ कर वखतें वो ? ते कहे . एषा शांतिप्रतिष्ठा यात्रास्त्रात्राद्यवसानेषु शांतिकलशं गृहीत्वा कुंकुमचंदनकर्पूरागरुधूपवासकुसुमांजलिस मेतः स्नात्रचतुष्किकायां श्रीसंघसमेतः शुचिशुचिवपुः पुष्पवस्त्र चंदनाजरणालंकृतः पुष्पमालां कंठे कृत्वा शांतिमुद्दोषयित्वा शांतिपानीयं मस्तके दातव्यमिति ॥ अर्थ: - ( एषा के० ) श्रा (शांतिः के०) शांतिपाठ ते ( प्रतिष्ठा के० )
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