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अजितशांतिस्तव अर्थसहित. २५ टा श्रने कामुक पुरुषना हृदयने आल्हाद कारक एवा अने (निरंतर के०) निर्व्यवधानपणुं ने ए हेतु माटें निबिग गाढ एवा (थण के०) स्तन जे पयो धर तेनो (जर के० ) नार तेणें करीने ( विण मिश्र के) विशेषे करीने नमेला ( गायलबाहिं के ) गात्रो जेमनां अर्थात् सुकुमारपणुं तथा तनुपणुं वे माटें लतावहीनी पेरें अत्यंत नमेलां शरिर जेमनां एवीयो, तथा ( मणि के ) मणियो, माणको अने (कंचण के ) सुवर्ण, तेनी करेली एवी अने ( पसिढिल के० ) प्रकर्षे करी शिथिल एवी जे ( मेहल के ) मेखला, तेणें करीने (सोहिश्र के०) शोजित ने ( सोणि तमाहिं के०) कटिनो प्रदेश जेमनो एवीयो तथा ( वर के०) श्रेष्ठ एवी ( खिंखिणि के) किंकिणी अने ( नेउर के ) नेपुर वली ( सति लय के०) मनोहर तिलक तथा ( वलय के )कंकण, एवां जे आभूषण तेणें करीने ( विनूसणियाहिं के) विशेषे करीने सुशोनित एवीयो तथा (रश्कर के०) रतिकर एटले प्रीति करनार एवं तथा (चउरमणोहर के०) चतुर पुरुषना मनने हरण करनारुं एवं ( सुंदरदंसणियाहिं के ) सुंदर जे दर्शन जेमनुं एवी देवीयोः ॥ २७ ॥ श्रा, चित्रादरानामा छंद जाणवो.
देव सुंदरीदिं पाय वंदिआदि वंदिया य जस्स ते सुविकमा कमा अप्पणो निमालएहिं मंडणोडण पगारएदि केहिं केहिंवि अवंग तिलय पत्तलेद ना
मएहिं चिल्लएहिं संगयं गयाहिं नति संनिविठ वंद णागयाहिं हुंति ते वंदिया पुणो पुणो॥२॥ नारायउँ ॥
अर्थः-(पायवंदियाहिं के) पोताना शरीरने विषे पहेरेलां नूषणोनां अथवा शरीरनां पाद जे किरणो तेना बंद जे समूह ते जे जेमने एवीयो देवांगना ने. तेमणे (वंदिया के ) वंदन कस्यां (य के०) च पादपूर्णार्थ बे. ते शुं वंदन कस्यां ले ? तो के (जस्स के०) जे नगवंतना (ते के) तो एटले ते प्रसिक एवां अने (सुविकमा के) रूहुं पराक्रम जेनुं अथवा गति जेमनी एवां (कमा के०) चरणारविंद, तेने वंदन कस्यां. ते चरणारविंद शेणे करी वंदन कस्यां ? तो के (अप्पणोनिमालएहिं के०) पोतानां लला
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