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प्रतिक्रमण सूत्र. व॥१५॥सवे जीवा कम्मवस, चनदह राज नमंत॥ ते मे सब खमाविश्रा, मुसावि तेह खमंत् ॥ १६ ॥ जंजं मणेण बई, जं जंवारण नासिअंपावं॥ जंजं कारण कयं, मिना मि उक्कडं तस्स ॥१७॥इति॥५॥
॥अथ ज्ञानपंचमीस्तुति प्रारंजः॥ ॥ श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपतिकृतप्राज्यजन्मानिषे क.श्चत्पंचादमत्तहिरदमदनिदा पंचवकोपमानः॥ निर्मुक्तः पंचदेह्याः परमसुखमयप्रास्तकर्मप्रपंचः,
कल्याणपंचमीसत्तपसि वितनुतां पंचमझानवान् वः॥२॥ अर्थः-(श्रीनेमिः के० ) श्रीनेमिनाथ जगवान् , ते (व के०) तमारा (पंचमीसत्तपसि के०) पंचमीना सारा तपने विषे (कल्याणं के) निर्वि नप्रत्ये ( वितनुतां के ) विस्तारो. हवे ते नेमिनाथ नगवान् केहवा ने ? तो के (पंचरूप के०) पांच रूपें करीने (त्रिदशपति के०) देवतानो पति एवो जे इंड, तेणें (कृत के०) कस्यो , (प्राज्यजन्मानिषेकः के०) महोटो अने उत्तम जन्मानिषेक जेमनो एवा, वली ते केहवा ? तो के (चंचत् के) दीपता एवां (पंचाद के०) पांच इंजियो तेरूप (मत्त के० ) मदोन्मत्त एवो (हिरद के०) हस्ती, तेना (मदनिदा के०) मद नेदवे करीने (पंचवको पमानः के० ) पंचवक्र जे सिंह तेनुं ने उपमान जेमने एवा , वली ते केहेवा जे? तो के (पंचदेह्याः के०) औदारिकादिक पांच शरीर ते थकी ( निर्मुक्तः के ) मुक्त थया एवा, वली ते केहवा ने ? तो के (परम के०) उत्कृष्ट एटले अतींघिय एवा (सुखमय के०)सुखें करी सहित, वली ते केहवा ? तो के (प्रास्त के) प्रकर्षे करी टाल्या , (कर्मप्रपंचः के०) कर्मना प्रपंच एटले विस्तार जेमणे एवा, वली ते केहवा ? तो के (पंचमझान वान् के०) पांचमुं ज्ञान जे केवलज्ञान तेणें करी युक्त ने ॥१॥
संत्रीणन् सच्चकोरान् शिवतिलकसमः कौशिकानंदमूर्तिः, पुण्याब्धिप्रीतिदायी सितरुचिरिव यः स्वीयगोनिस्तमांसि।।
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