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सकलाऽर्दत् अर्थसहित.
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fis बे, ते उपसर्ग निवारे बे, पण श्रीपार्श्वनाथ वे ते समदृष्टिवाला बे, पर जावां वर्त्तता नथी. वली केहवा बे ? तो के ( प्रजुः के० ) समर्थ दे ||२५|| हवे चोवीशमा श्रीमान स्वामीने स्तवे बे. श्रीमते वीरनाथाय, सनायायाद्भुतश्रिया ॥ मदानंदसरोराज, मरालायार्दते नमः ॥ २६ ॥
अर्थ:- ( ० ) अरिहंत एवा ( वीरनाथाय के० ) श्रीमहावीर स्वामी तेमने ( नमः के० ) नमस्कार था. ते अरिहंत केहवा बे ? तो के ( श्रीमते के० ) केवल ज्ञानरूप बे धन जेने तथा वली केहवा बे ? तो के (तश्रिया के०) व महाप्रातिहार्य तथा चोत्रीश यतिशयादिक जे अद्भुत लक्ष्म। तेणें करीने ( सनाथाय के० ) सहित बे. वली केहवा बे ? तो के (महानंद के० ) महानंदरूप ( सरः के० ) सरोवर तेने विषे की मा करवाने ( राजमरालाय के० ) राजहंस नामा पक्षीनी तुल्य बे ॥ २६ ॥
जयति विजितान्यतेजाः सुरासुराधीश सेवित श्रीमान् ॥ विमलस्त्रासविरदित, स्त्रिभुवन चूमामणिर्भगवान् ॥ २७ ॥ अर्थः- ( विजितान्यतेजाः के० ) विशेष करी जींत्युं वे अन्यनुं तेज जे (सुरासुराधीश के० ) सुर ने असुर, तेना जे इंद्रो तेमणें (से वितः के० ) सेवेला बे जेमने, तथा वली केहवा बे ? तो के ( श्रीमान् के०) केवल ज्ञानरूपलक्ष्मीवंत ठे वली केहवा बे? तो के ( विमलः के० ) नि मलबे, तथा ( त्रासविरहितः के०) सप्तजयरूप त्रास ते थकी विशेष कर रहित बे, तथा वली केहवा बे ? तो के ( त्रिभुवन के० . ) त्रण जुवनने विषे ( चूकामणिः के०) मुकुटसमान बे. एवा ( जगवान् के० ) कैश्वर्यगुणयुक्त प्रभु ते, ( जयति के० ) जयवंता वर्त्ते बे ॥ २७ ॥
वीरः सर्वसुराऽसुरेंद्रमदितो, वीरं बुधाः संश्रिताः, वीरेणादितः स्वकर्मनिचयो, वीराय नित्यं नमः ॥ वीरात्तीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं, वीरस्य घोरं तपो, वीरे श्रीधृतिकीर्त्तिकांति निचयः, श्रीवीर! नवं दिश ॥२८॥ अर्थ: - ( सर्व के० ) समग्र ( सुर के० ) वैमानिक देवता (सुर
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