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सकलाऽर्हत् अर्थसहित. २०५ हवे उंगणीशमा श्रीमल्लिनाथ जिनने स्तवे बे. सुराऽसुरनराधीश, मयूरनववारिदम् ॥ कर्मउ
न्मूलने हस्ति, मलं मल्लिमन्निष्टुमः ॥२१॥ अर्थः-( मल्लिं के) श्रीमबिनाथप्रत्ये (अनिष्टुमः के ) स्तवना करिये बैयें. ते श्रीमति जिन केहवा डे ? तो के (सुर के०) वैमानिक देव ता, ( असुर के) नवनपत्यादि तथा ( नर के ) मनुष्य, तेहना (अ धीश के ) इंछ, उपेंड, चक्रवर्त्यादिक, तेरूप जे ( मयूर कें० ) मोर तेह ने नवास करवाने ( नववा रिदं के ) नवीन आषाढना मेघसमान बे. वली ते केहवा ? तो के ( कर्म के) ज्ञानावरणादिक कर्म तेरूप जे (जु के०) वृद तेहना (उन्मूलने के ) उखेमी नाखवाने विषे एटले दूर करवाने विषे ( हस्तिमद्धं के ) ऐरावत हस्ती जेवा दे ॥१॥
हवे वीशमा श्रीमुनिसुव्रतजिनने स्तवे . जगन्महामोदनिज्ञ, प्रत्यूषसमयोपमम् ॥
मुनिसुव्रतनाथस्य, देशनावचनं स्तुमः ॥१२॥ अर्थः-( मुनिसुव्रतनाथस्य के ॥ मुनिसुव्रतनाथसंबंधी (देशनावचनं के ) धर्मोपदेशनुं वचन, तेने (स्तुमः के ) स्तवीयें बैयें. ते देशनावच न केहबुं बे ? तो के ( जगन्महामोह के ) जगत्ने विषे रहेला एवा जे प्राणीयो तेनो जे महामोह ते रूप जे ( निमाके) निजा, तेने दूर कर वाने (प्रत्यूषसमयोपमं के) प्रत्नातकालनी उपमा डे जेहने एवं बे, अर्थात् जेम प्रजातमां उघथकी जागीयें बैयें, तेम प्रजुना उपदेशरूप प्रजातथकी अज्ञानरूप निखानो त्याग करी जागीयें बैयें ॥ ॥
हवे एकवीशमा श्रीनमिनाथ जिनने स्तवे बे. लुतोनमतां मूर्ध्निः, निर्मलीकारकारणम् ॥
वारिप्लवा श्व नमेः पातु पादनखांशवः॥१३॥ अर्थ-(नमेः के० ) श्रीनमिनाथ जे जे तेमना (पादनखांशवः के) पाद जे पग तेना जे नख तेनां अंशु जे किरणो ते, तमारं (पांतु के) रद ण करो, अर्थात् नमिनाथना चरणना नखनां जे किरणो , ते रक्षण करो. ते चरणनखांशु केहवा ? तो के (नमतां के) नमस्कार करता एवा
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