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प्रतिक्रमण सूत्र.
अर्थः - (वाणी के०) वाग्देवता, जे श्रुताधिष्ठायिनी, (तिहुपसा मिलि के० ) त्रिभुवनस्वामिनी एटले सूरिमंत्रपठपंचकाधिष्ठायिनी एटले एनं ध्यान करनार जे जक्त जन, तेने प्रातिहार्य करनारी एवी, अने पद्मद्रह निवासिनी व्यंतरजा तिवाली (सिरिदेवी के०) लक्ष्मीनामा देवी तथा (ज करायग लिपिमगा के०) योनी मध्यें द्युतियें करीने जे राज एटले धिक शो तेने यक्षराज कहियें, ने गणिपीटक जे द्वादशांग तेनो धिष्टायिक बे, ए हेतुमारें ते गणिपीटक नामा यक्षराज जाणवो, तथा ( ग ० ) सूर्यादि नवग्रह तथा ( दिसिपाल के० ) दश दिक्पाल तथा ( सूरिंदा के० ) सुरना इंड. ते चोराव इंद्र ए सर्व सम्यग्रदृष्टि देवो बे, ते ( सयावि के० ) सदा निरंतर पण ( जिणनत्ते के० ) श्री तीर्थंकरना जक्तिकारक जनोने ( रकंतु के० ) रक्षाने करो ॥ ४ ॥
रकंतु मम रोहिणी, पन्नत्ती वसिंखला य सया ॥ वऊंकुसि चक्केसरि, नरदत्ता कालि महाकाली ॥५॥
अर्थ: - ( मम के० ) मने अने उपलक्षणथकी अन्य जीवोने पण सपडवोकी (सया के० ) निरंतर ( रकंतु के० ) रक्षण करो. आहिं सर्वो पडवो की ए पद अध्याहारथी लेबुं. हवे ते कोण रक्षण करो ? तो के शोल देवीयो रक्षण करो. तेनां नाम कहे बे. एक ( रोहिणी के ० ) पुण्य रूप बीजने उत्पन्न करे बे माटें रोहिणी कहियें, ते रोहिणीनामा देवी रक्षण करो. बीजी (य के० ) वली ( पन्नत्ती के० ) प्रकृष्ट बे इति एटले ज्ञान जेने विषे माटे प्रज्ञप्तिदेवी एवं नाम कहियें, तथा त्रीजी ( वजसिं खला के० ) वज्रनी पेठें दुर्भेद्य बे, दुष्ट दमनार्थ एवी श्रृंखला ते बे जेना हाने विषे तेमाटे तेने वज्रशृंखला देवी कहियें. ए त्रणे देवीयो महारुं रक्षण करो. चोथी (वऊंकुसि के० ) वज्र ने अंकुश, ए वे अस्त्र बे जे ना हस्तने विषे माटें तेने वज्रांकुशी कहियें तथा पांचमी (चक्केसरिके० ) निरंतर चक्रनुं धारण करवाएं बे जेना हाथने विषे माटें तेने चक्रेश्वरी कहियें, तथा बडी (नरदत्ता के० ) नर जे मनुष्य तेने वरादिकनी देवावाली बे. माटें तेने नरदत्ता देवी कहीयें तथा सातमी ( कालि के० ) जेना शरीरने विषे श्यामवर्णत्व बे, माटें काली देवी कहीयें. अथवा शत्रु
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