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प्रतिक्रमण सूत्र. ( अर्हतः के०) श्रीअरिहंत प्रजुने ( समुपास्महे के ) वंदन. सत्कार. सन्मानादिकें करी अमें सेवीयें छैयें ॥२॥ हवे वर्तमान चोवीशजिनने प्रणाम करवा श्चतो तो
प्रथम श्री रुपनदेवजीने स्तवे बे. आदिमं पृथिवीनाथ, मादिमं निःपरिग्रहम् ॥
आदिमं तीर्थनाथंच, शेषनस्वामिनं स्तुमः॥३॥ अर्थः-प्रथम (रुषन के०) जेमनी मातायें स्वप्नमां वृषन दीठो, माटें झपन कहिये, अथवा जेमनी दक्षिण जंघाने विषे वृषनर्नु चिन्ह ने माटें
षन कहिये, एवा (स्वामिनं के०) श्री रुषन स्वामी तेने (स्तुमः के०) स्तवियें बैयें. ते केहवा जे ? तो के (आदिमंपृथिवीनाथं के ) प्रथम पृथिवीना नाथ, अर्थात् सर्वनी आदिमां राजा एवा, तथा वली ते केहवा ने? तो के (आदिमं के) सर्वश्री प्रथम एवा (निःपरिग्रहं के) निःशेष पणायें करीने त्याग कस्यो ने परिग्रह जेणे एवा अर्थात् अग्रिम साधु बे. वली ते केहवा ? तो के (आदिमं के०) प्रथम एवा (तीर्थनाथं के०) तीर्थना नाथ अर्थात् आदिम तीर्थंकर एवा ॥३॥
हवे बीजा श्रीअजितनाथने स्तवे . अदंतमजितं विश्व, कमलाकरनास्करम् ॥
म्लानकेवलादर्श, संक्रातजगतं स्तुवे ॥४॥ अर्थः-(अजितं के०) कर्मोयें जीती न शकाय माटें अजित अथवा माताना गर्नमां रहे ते अन्य राजायें एमनां माता पिता जीती न शका यां, ते माटें अजित कहिये ते बीजा अजितनाथने (स्तुवे के०) हुं स्तवं बु. ते अजितनाथ केहवा ठे? तो के (अर्हतं के ) त्रण लोकने पूजवा यो ग्य एवा तथा वली ते केहवा ? तो के ( विश्वकमलाकर के०) विश्व रूप जे कमलाकर सरोवर अर्थात् कमलना आकर एटले समूह ने जेमां एवं सरोवर तेहने प्रकाश करवामां (नास्करं के) सूर्यतुल्य एवा, वली ते केहवा ? तो के (अम्लान के०) निर्मल एवं (केवल के०) केवल ज्ञा नरूप, (आदर्श के ) आरीसो तेने विषे (संक्रांत के०) संक्रमाव्युं , एटले प्रतिबिंबित कघु ( जगतं के०) जगत् जेणे एवा ३ ॥४॥
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