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प्रतिक्रमण सूत्र. के०) सर्व अपराधप्रत्ये ( खमावश्ता के० ) खमावीने, वली एम कहे के ते सर्व जीवोनी उपर समजाव ते रूप (धम्म के० ) धर्म, तेने विषे (निहिय के ) निधित कयुं बे एटले स्थाप्यु नावथकी आरोपण कमु , ( नियचित्तो के ) निजचित्त एटले पोतार्नु मन जेणें एहवो (अहयंपि के०) हुँ पण (सबस्स के०) सर्व जीव राशिना कीधा जे अप राध ते अपराधप्रत्यें (खमामि के०) हुँ खमुं बुं ॥३॥ आ गाथामां लघु अहावीश अने गुरु नव, सर्वादर सामंत्रीश ३ ॥ इति खामणां ॥ ३४ ॥
॥अथ नमोस्तु वर्षमानाय ॥ श्वामो अणुसहिं ॥ नमो खमासमणाणं ॥ नमोऽहेत्॥ नमोऽस्तु वर्षमानाय, स्पईमानाय कर्मणा ॥
तऊयावाप्तमोदााय, परोदाय कुतीथिनाम् ॥१॥ अर्थः-( वर्धमानाय के० ) श्रीवर्धमान स्वामी जणी, ( नमोस्तु के०) नमस्कार थार्ड, ते श्रीवर्डमान खामी केहवा छे ? तो के ( कर्मणा के०) कर्मोनी साथे ( पढ़मानाय के) स्पर्काना करनार बे, एटले ाना करनार बे, केम के ? कर्मोना वैरी , माटें तेनी साथें ईर्ष्याना करनार बे. वली केहवा ने तो के ( तऊया के० ) ते कर्मनो जय करीने (अवाप्त के) पाम्या ( मोदाय के० ) मोद प्रत्यें एवा , वली केहवा ? तो के ( कुतीर्थिनां के० ) कुतीर्थीयो जे मिथ्यादृष्टि जीवो, तेने (परो दाय के ) परोद में, एटले दृष्टिथी दूर जे. अर्थात् मिथ्यादृष्ठि जीव होय, ते प्रजुनुं स्वरूप जाणी न शके ॥ इति नावः॥१॥
येषां विकचारविंदराज्या, ज्यायः क्रमकमलावलिं दधत्या सदृशैरिति संगतं प्रशस्य, कथितं संतु शिवाय ते जिनेशः॥२॥
अर्थः-(ते के ) ते ( जिनेंडाः के ) जिनें तीर्थंकर, (शिवाय के०) शिव एटले परम कल्याण, तेने अर्थे ( संतु के०) था. ते जिनेऊ केहवा ने ? तो के (येषां के०) जे जिनेंडोनी ( ज्यायः के० ) प्रधान प्रशंसनीय एवी (क्रमकमलावलिं के०) चरणकमलनी श्रावलि एटले श्रेणीप्रत्यें ( दधत्या के ) धरती हुश् एटले पोतानी उपर स्थापित हुश्, अर्थात् वि हारसमय प्रजुना चरणकमलनी नीचे सुवर्णमय नव कमल जे देवता रचे
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