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तीर्थवंदना.
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लाख बत्रीश, जिनवर चैत्य नमुं निशि दीस ॥ १ ॥ बीजे लाख अहावीश कह्यां, त्रीजे बार लाख सद्दयां ॥ चोथे स्वर्गे म लाख धार, पांच वंदूं लाखज चार ॥ २ ॥ बठे स्वर्गे सहस पच्चास, सातमे चालिश सहस प्रासाद | मे खर्गे व हजार, नव दशमे वंदूं शत चार ॥ ३ ॥ अग्या र बारमेण सार, नवग्रैवेयकें त्रणशें अढार ॥ पांच अनुत्तर सर्वे मली, लाख चोराशी अधिकां वली ॥ ४ ॥ सहस सत्ताएं त्रेविश सार, जिनवर वन तो अधिकार || लांबां शो योजन विस्तार, पचास उंचां बहोंतेर धार ॥ ५ ॥ एकशो एंशी बिंब प्रमाण, सजा सहित एक चैत्यें जाए | शो को बावन को संजाल, लाख चोराएं सहस चाल ॥ ६॥ सातशे उपर साठ विशाल, सवी बिंब प्रणमुं त्रण काल ॥ सात कोम ने बहोंतेर लाख, जुवनपतिमां देवल जांख ॥७॥ एकशो एंशी बिंब प्रमाण, एक एक चैत्यें संख्या जाण ॥ तेरशें कोम नेव्याशी कोम, शाठ लाख दूं कर जोम ॥ ८ ॥ बत्रीरों ने उगणशाठ, तीर्छा लोकमां चैत्यनो पाठ ॥ त्रण लाख एकाएं हजार, त्रणशें वीश ते बिंब जुहार ॥ ए ॥ व्यंतर ज्यो तिषी मां वलि जेह, शाश्वता जिन वंदूं तेह || रुपन चंद्रानन वारिषेण, वर्द्धमान नामें गुणसे ||१०|| समेत शिखर वंदूं जिन वीश, अष्टापद वंदूं चोवीश ॥ विमलाचल ने गढ गिरनार, आबु ऊपर जिनवर जुहार ॥ ११ ॥ शंखेश्वर केसरियो सार, तारंगें श्री अजित जुहार ॥ अंतरिक वरकाणो पास, जीरावलो ने थंजण पास ॥ १२ ॥ गाम नगर पुर पाटण जेह, जि नवरचैत्य नमुं गुणगेह ॥ विहरमान वंदूं जिन वीश, सिद्ध अनंत नमुं निश दीस ॥ १३ ॥ द्वीपमां जे अणगार, अढार सहस शीलांगना धार ॥ पंच महाव्रत समितिसार, पाले पलावे पंचाचार ॥ १४ ॥ बाह्य अभ्यंतर तप उजमाल, ते मुनि वंदूं गुण मणिमाल || नित नित ऊठी कीर्त्ति करूं, जीव कहे जवसायर तरूं ॥ १५ ॥ इति ॥ ४३ ॥
॥ अथ लघुशांतिस्तवप्रारंभः ॥
बृहवीय प्रसिद्धप्रभावी श्रीमानदेव सूरि, ते नाकुल नगरमां चोमासुं ह्या हता, ते समयें, शाकंजरी नगरमां श्रीसंघ, शाकिनीजनित मरकीना उपवें पीमित थयो, तेवारें त्यांना संघें मलीने विनतिपत्र लखी तेमां रोग (वरूप निवेदन करी श्रीमानदेव सूरि पासें मनुष्य मोकल्यां, पठी पद्मा,
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