Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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[ १६ ] है ? प्रथम पक्ष तो अमान्य होने से स्वीकार नहीं कर सकते ( क्योंकि बौद्ध ने प्रसज्य प्रतिषेध रूप प्रभाव नहीं माना है) और द्वितीय पक्ष माने तो अगो का अर्थ गो ही होता है, यह तो द्राविडी प्राणायाम मात्र हुग्रा कि गो शब्द ने सीधे गो वाच्य को न कहकर यह अगो नहीं है ऐसा घुमाकर गो वाच्य को कहा । अतः प्रतीति का अपलाप नहीं करके ऐसा स्वीकार करना चाहिये कि गो प्रादि शब्द तदर्थवाचक होते हैं ।
स्फोटवाद—भर्तृहरि प्रभृति का कहना है कि शब्द पदार्थ का वाचक नहीं है किन्तु स्फोट पदार्थ का वाचक है, अर्थात् गकार आदि वर्णों द्वारा अभिव्यज्यमान नित्य व्यापक ऐसा कोई स्फोट नामा तत्त्व है वही अर्थ का वाचक होता है, गकार प्रादि वर्ण तो उत्पन्न होकर विनष्ट हो चुकते हैं अतः वे अर्थ के वाचक नहीं हो सकते, यदि गो आदि शब्द अर्थ के वाचक होते तो जिस पुरुष ने उस शब्द के संकेत को ग्रहण नहीं किया है उसे भी उस शब्द द्वारा गो अर्थ की प्रतीति होनी चाहिए थी ? आचार्य ने समझाया है कि सहज योग्यता और संकेत होने से शब्द स्ववाच्य को अवश्य कहते हैं, गकार आदि वर्णं विनष्ट हो चुकने पर भी पूर्व पूर्व वर्ण के ज्ञान संस्कार अवस्थित ही रहते हैं और वे अर्थ प्रतीति कराते हैं, गो ग्रादि शब्द और सास्नादिमान पदार्थादि को छोड़कर इनके मध्य ऐसा कोई तत्त्व प्रतीति नहीं होता कि जिसे स्फोट नाम दिया है, बात तो यह है कि "हे देवदत्त ! गां ग्रभ्याज" इत्यादि वाक्य या "घटः" इत्यादि पदों के उच्चारण करते ही अर्थ प्रतीति होती है इसमें क्रम यह है कि पूर्व पूर्व वर्णों के उच्चारण के साथ उन उन वर्णों के ज्ञान संस्कार प्रादुर्भूत होते जाते हैं और अंतिम वर्ण को सहायता करके पूर्ण वाक्यार्थ या पद के अर्थ का अवभासन कराते हैं, पूर्व वर्ण का ज्ञान जिसमें सहायक है ऐसा अंतिम वर्ण अर्थ को प्रस्फुटित कर देता है, शब्द नष्ट हो चुकने पर भी उससे उत्पन्न हुआ ज्ञान या संस्कार बना ही रहता है अथवा ज्ञान संस्कार का आधारभूत श्रात्मा तो सदावस्थित ही है, उसी से अर्थ बोध होता रहता है, अतः यदि वैयाकरणों को स्फोट सर्वथा इष्ट ही है तो उसी ज्ञान संस्कार युक्त आत्मा को स्फोट नाम देना चाहिए " स्फुटति - प्रकटी भवति प्रर्थः अस्मिन् इति स्फोट : चिदात्मा" ऐसा व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ भी सिद्ध है । इस प्रकार स्फोटवाद का खंडन होता है ।
वाक्य लक्षण विचार -- शब्द और अर्थ का यथार्थ रूप से वाचक वाच्य संबंध सिद्ध होने पर प्रश्न होता है पद एवं वाक्य का लक्षण क्या होना चाहिये ? इसके
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