Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
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प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा..
द्वितीय अध्याय........{56} यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि नियुक्तियाँ सभी आगम ग्रन्थों पर उपलब्ध नहीं है। आवश्यक नियुक्ति में निम्न दस आगमों पर नियुक्ति लिखने का उल्लेख है
(१) आवश्यक नियुक्ति (२) दशवैकालिक नियुक्ति (३) उत्तराध्ययन नियुक्ति (४) आचारांग नियुक्ति (५) सूत्रकृतांग नियुक्ति (६) दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति (७) बृहत्कल्प नियुक्ति (८) व्यवहार नियुक्ति (६) सूर्यप्रज्ञप्ति नियुक्ति (१०) ऋषिभाषित नियुक्ति, किन्तु वर्तमान में इन दस नियुक्तियों में से आठ ही नियुक्तियाँ उपलब्ध होती हैं। सूर्यप्रज्ञप्ति नियुक्ति और ऋषिभाषित नियुक्ति वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। ये दोनों नियुक्तियाँ लिखी गई थी या नहीं इस सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद है। इन उपलब्ध आठ नियुक्तियों के अतिरिक्त, वर्तमान में नियुक्तियों के नाम से जो साहित्य उपलब्ध है उसमें गोविन्द नियुक्ति, ओध नियुक्ति, पिण्ड नियुक्ति और आराधना नियुक्ति की परिगणना होती है । इनमें से आराधना नियुक्ति का उल्लेख श्वेताम्बर साहित्य में नहीं मिलता है। इसका उल्लेख प्रोफेसर ए.एन. उपाध्याय ने बृहद्कथाकोष की अपनी प्रस्तावना में किया है,१२५ किन्तु डॉ. सागरमल जैन ने 'नियुक्ति साहित्य एक पुनर्चिन्तन' में उनकी इस मान्यता को भ्रामक बताया है। डॉ. जैन के अनुसार मूलाचार में आगम ग्रन्थों के उल्लेख के सन्दर्भ में आराधना और नियुक्ति का उल्लेख आया है। यहाँ नियुक्ति शब्द सामान्य रूप से नियुक्ति साहित्य का सूचक है, न कि आराधना नियुक्ति का। जहाँ तक ओधनियुक्ति और पिण्ड नियुक्तियों का प्रश्न है, विद्वानों ने इन्हें स्वतन्त्र नहीं माना है। ओधनियुक्ति को आवश्यक नियुक्ति का और पिण्ड नियुक्ति को दशवैकालिक नियुक्ति का ही एक भाग माना गया है। गोविन्द नियुक्ति का उल्लेख तो श्वेताम्बर साहित्य में उपलब्ध होता है किन्तु वर्तमान में यह नियुक्ति भी उपलब्ध नहीं है। ऐसा माना जाता है कि आचारांगसूत्र में वर्णित षट्जीवनिकाय की अवधारणा में, पंच स्थावरकायों में जीव है, इसकी सिद्धि के लिए ही यह नियुक्ति लिखी गई थी। इसके लेखक आचार्य गोविन्द थे, जिनका उल्लेख नंदीसूत्र की स्थविरावली में मिलता है। यह नियुक्ति अपने लेखक के नाम से ही प्रसिद्ध रही है। ओध नियुक्ति और पिण्ड नियुक्ति की गणना आगम ग्रन्थों के रूप में भी की जाती है। इन दोनों नियुक्तियों में, गुणस्थान सिद्धान्त की क्या स्थिति है, इसकी चर्चा हम आगम साहित्य सम्बन्धी विवेचन में कर चुके हैं। संक्षेप में इन दोनों नियुक्तियों में हमें गुणस्थान सम्बन्धी कोई चर्चा उपलब्ध नहीं हुई है। अवशिष्ट आठ नियुक्तियों में गुणस्थान सम्बन्धी अवधारणा किस रूप में उपलब्ध है इसकी चर्चा आगे करेंगे। नियुक्ति साहित्य में गुणस्थान से सम्बन्धित जो उल्लेख मिलता है वह आवश्यक नियुक्ति में अवतरित निम्न दो गाथाएँ हैं
मिच्छादिट्ठी सासायणे य तह सम्ममिच्छादिट्ठी य। अविरससम्मदिट्ठी विरयाविरए पमत्ते य ।। तत्ते य अप्पमत्तो नियट्टिअनियट्टिबायरे सुहुमे। उवसंतखीणमोहे होइ सजोगी अजोगी य।।
_ - नियुक्तिसंग्रह'२६ (आवश्यक नियुक्ति, पृ. १४६) इन दोनों गाथाओं में स्पष्टरूप से चौदह गुणस्थानों का निर्देश है। इनमें गुणस्थानों के नाम इस क्रम में दिए गए हैं - (१) मिथ्यादृष्टि (२) सास्वादन (३) सम्यग्मिथ्यादृष्टि (४) अविरतसम्यग्दृष्टि (५) विरताविरत (६) प्रमत्त (संयत) (७) अप्रमत्त (संयत) (८) निवृत्ति (E) अनिवृत्तिबादर (१०) सूक्ष्म (संपराय) (११) उपशान्त (मोह) (१२) क्षीणमोह (१३) सयोगी (केवली) (१४) अयोगी (केवली) । आवश्यकनियुक्ति में उपलब्ध इन गाथाओं में इन नामों के अतिरिक्त अन्य कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। इन चौदह अवस्थाओं के साथ गुणस्थान शब्द का भी उल्लेख नहीं है, फिर भी नामों की समरूपता के आधार पर हमें यह तो स्वीकार करना पड़ेगा कि ये दोनों गाथाएँ चौदह गुणस्थानों का उल्लेख करती हैं, चाहे इनके लिए गुणस्थान शब्द का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया हो। इसके अतिरिक्त इन चौदह नामों में एक विशेषता यह देखने को मिलती है कि यहाँ आठवें गुणस्थान का नाम निवृत्ति दिया गया है। समवायांगसूत्र में भी अप्रमत्तसंयत के बाद निवृत्तिबादर नामक अवस्था का उल्लेख मिलता है। यहाँ निवृत्ति से सामान्य तात्पर्य मिथ्यात्वत्रिक और अनन्तानुबन्धी कषाय चतुष्क को ही लेना चाहिए। दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में निवृत्तिबादर
_ १२५ बृहद्कथाकोष, पृ. ३१, प्रो. ए.एन. उपाध्येय.
१२६ नियुक्ति संग्रह, भद्रबाहु विरचित, संपादक विजय जिनेन्द्रसूरि, प्रकाशक श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, लाखाबाक्ल, शान्तिपुरी सौराष्ट्र.
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