Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP

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Page 547
________________ Jain Education Intemational २ २२३ | ध्यानद्वार २२४ | ध्यानकेपाये _ द्वार | ur| | ३ . | . २२५ । पदव्य द्वार | २२६ परिणाम द्वार|३ २२७ वीर्यद्वार १ १ १ २२९ तीर्थ-अतीर्थ अतीर्थ 19 अतीर्थ | अतीर्थ । द्वार . २२६ | सम्यक्त्व | . १ तीर्थअतीर्थ . " द्वार . २३० संयतासंयती द्वार २३१ | लिंगद्वार WAN ३ |mro |DAN - ००० mom| | |o For Private & Personal Use Only २३२ चरित्र द्वार २३३ | निग्रंथ प्रकार द्वार २३४ | कल्प द्वार N०० ० | mero mom अ ००० m | ० o ] | 0 ५ सरागी |० २३५ | परिसह द्वार २३६ | प्रमाद द्वार २३७ सरागी वीतरागी द्वार " ॥ , उपशम वीतरागी २३८ । प्रतिपाति- अप्रतिपाति अप्रतिपाति | प्रतिपाती । दोनों प्रतिपाती अप्रति पाती द्वार छास्थ केवली केवली २३६ ध्यस्थ केवली परिशिष्ठ-१........{491} www.jainelibrary.org

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