Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP

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Page 545
________________ Jain Education International १८ वसस्थावर १८९सन्नी-असन्नी १६० २ भाषक-अभा पकद्वार १६१ | आझरक अनाहरक | Im | १६२ - ओजादि आहार द्वार १६३ - सचित्तादि आहार द्वार १६४ | दिशीआझर | ३-६ द्वार १६५ | पर्याप्त अपर्याप्त द्वार १६६ | पर्याद्वार ur For Private & Personal Use Only - अ ॐur 18] . |१० १० M و ابدا | २३ MH | १६७ प्राणद्वार ४ से १० ६ से १०० १६८ इन्द्रिय द्वार १से ५ २ से ५ ५ १६६ | इन्द्रिय विषय से २३ | १३ से |२३ द्वार २०० | संज्ञा द्वार २०१ | वेद द्वार २०२ कवाय द्वार ४ २०३ | लेश्या द्वार २०४ योग द्वार | २०५ शरीर द्वार ४ »| 0 | سه awajuol MRI . |० 10.००. ०० »mww | | | | ०००/o1om | || | سه | परिशिष्ठ-१........{489} www.jainelibrary.org

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