Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP

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Page 543
________________ Jain Education Intemational 5 ० ६६०५ ४६६७ ० ४०६७ 30 - 0 १ ० १५३ । नाम भंगद्वार | १३६२६ 1१११३ |२१२ १५४ गोत्र भंगद्वार | ५ १५५ । अन्तराय भंगद्वार १५६ । तंधी के भींगे | १० १५७ | इयावही -३ भंगद्वार १५. मूल भावद्वार ३ . | 9 10 M. 100 m ० | २ For Private & Personal Use Only r or | २ . १५६ ओदयिक पावद्वार १६० उपशमिक भावद्वार १६१ क्षयोपशमिक | ११ भावद्वार | १६२ यायिक भावद्वार १६३ | परिणामिक भावद्वार १६४ | सन्निपातिक भावद्वार १६५ | समुच्चय, भावभेदद्वार १६६ / श्रेणीद्वार १६७ | कर्मभेदद्वार १६८ कर्म निर्जरा द्वार १६६ दशकरण |१० द्वार २ 10 ३ |३५ २७ |२७ २० ०/v8 ov 19 । olyv 90 vive परिशिष्ठ-१........{487} www.jainelibrary.org

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