Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP

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Page 544
________________ Jain Education International | गुणश्रेणीद्वार सकाम निर्जरा नही तीसरे से चौथे से पांचवे से छठे से | सातवे से आठवें से नवे से दसवें से ग्यारहवें । बारहवे से | तेरहवें से संख्यात | असंख्यात | असंख्यात | असंख्यात असंख्यात | असंख्यात | असंख्यात | असंख्यात | से | असंख्यात असंख्यात गुणा | गुणा गुणागुणा गुणा गुणा गुणा गुणा असंख्यात | गुणा गुणा KIwcc Joor . १७१ | आगतिद्वार |४ १७२ | पागतिद्वार १७३ | जागतिद्वार ४ १७४ आजातिद्वार | -१७५ | पाजाति द्वार १७६ जाजाति द्वार ५ १७७ | जाय द्वार ६ १७८ पाकाया द्वार ६ आकाया | Iol०० | | १७६ 10oY १८० आदण्डक २४ २२ . | ૨૨ १६ १६ १६ १६ १६ द्वार २४ For Private & Personal Use Only ५ १८१ पादण्डक द्वार १६२ | जादण्डक २४ द्वार १५३ । सामान्य १४ । । जीवभेद द्वार १८४ । विशेष १७० । ३६७ १८ | २३५ १५ १५१५ जीवभेद द्वार १५५ जीवायोनी ८४ लक्ष । ३२ लक्ष २६ लक्ष २६ लक्ष | १८ लक्ष | १४ लक्ष | १४ लक्ष | १४ लक्ष | १४ लक्ष | १४ लक्ष | १४ लक्ष | १४ लक्ष | १४ लक्ष द्वार १८६ | कुल कोडी १ करोड़ १ करोड़ | १ करोड ६ १२ लक्ष : द्वार ६७॥ लक्ष ४० लक्ष | १६।।। लक्ष लक्ष करोड़ करोड़ करोड़ करोड़करोड़ १६७ | सूक्ष्म बादर २ द्वार १४ लक्ष परिशिष्ठ-१........{488} www.jainelibrary.org

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