Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
View full book text
________________
प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य में गुणस्थान की अवधारणा......
पंचम अध्याय........{325)
उदय यंत्र
गुणस्थान
क्रमांक
| अयोग्य | ज्ञा. | द. | वे. | मो.
उदय के | उदय के । योग्य
कर्म । कर्म प्रकृतियां प्रकृतियां
आ.
ना. | गो. | अं.
]
]
२२/४
१०४
or]
सामान्य | ८ | १२२ ० ५ ६ | २ | २८४ ६७ | २ |५ १ मिथ्यात्व | ८ | ११७ | ५ | ५ | ६ | २ | २६, ४.६४ | २ |५ २ |सास्वादन | ८ | १११ ११ | ५ | ६ | २ | २५] ४ | ५६ ३ मिश्रदृष्टि | ८ | १०८ १०८ २२ ५
४ | ५१ ४ अविरत सम्यग्दृष्टि ८
२२ ५ देशविरत | ८ | ७ | ३५ ५ ६ | २ | १८ | २ | ४४ | २ |५ ६ प्रमत्तसंयत | ८ | १ | ४१ | ५ | ६ | २ | १४ | १ | ४४ | १ |५ ७ अप्रमत्तसंयत ७६
१४|१४२ ८ अपूर्वकरण
७२ ।
५०५ ६ | २ | १३ | १ | ३६ ६ अनिवृत्तिकरण
७ | १ | ३६ १० सूक्ष्मसंपराय
६० | ६२ ५ ६ ११/उपशान्तमोह ७ ५६ / ६३ ५ ६ २ | 0 | १ | ३६ | १ |५ । १२] क्षीणमोह के
। ६५ द्विचरम समय तक क्षीणमोह के चरम समय
तक १३ सयोगीकेवली । ४ । ४२ । ८० ० ० | २ | ० १ | ३८ | १ . १४ अयोगीकेवली । ४ । १२ । ११०/ ० ० १ । ०१६ १
|०००
।
१
occ
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org